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________________ ४६८ भगवतीसूत्रे जघन्येन एको वा, द्वौ वा, त्रयो वा, उत्कृष्टेन संख्येयाः काययोगिन उपपद्यन्ते, सर्वससारिजीवानां सर्वदैव काययोगस्य सद् मात्रात्, ‘एवं सागारोवउत्ता वि, एवं अणागारोवउत्ता वि' एवं-पूर्वोक्तरीत्यैव साकारोपयुक्ता अपि साकारोपयोगवन्तोऽपि, एवम् अनाकारोपयुक्ता अपि-आझारोपयोगान्तोऽपि जघन्येन एको वा, द्वौ वा, त्रयो वा, उत्कृष्टेन संख्येयास्तत्रोत्पद्यन्ते ।।पू० १।। मूलम्-"इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवाए, तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु संखेज्जवित्थडेसु नेरइएसु एगसमएणं केवइया नेरइया उबटुंति ? केवइया काउलेस्सा उबति ? जाव केवइया अणागारोवउत्ता उबटंति ? गोयमा! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए, तीसाए निरयावाससयसहस्तेसु संखेज्जवित्थडेसु नरएसु एगसमएणं जहण्णेणं एको वा, दो वा, तिन्नि वा, उकोलेणं संखेज्जा नेरइया उबटंति, एवं जाव सन्नी, असन्नीण उवटंति, जहण्णेणं एको वा, दो वा, तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा भवसिद्धिया उच्वटंति, एवं जाव सुय अन्नाणी, विभंगनाणी ण उव्वदृति, चक्खुदंसणी ण उवदंति, जहणणं एको वा, दो वा, तिन्नि वा, उक्कोसेगं संखेज्जा अचखुदंसणी उवहृति, तीन और उत्कृष्ट से संख्यात काययोगी उत्पन्न होते हैं क्यों कि समस्त संसारी जीवों में काययोग का सदा ही सद्भाव रहता है एवं सागारोवउत्ता वि एवं अगागारोवउत्ता वि' इसी प्रकार से साकारोपयोगवाले भी और अनाकारोपयोगवाले भी जघन्य से एक दो अथवा तीन और उत्कृष्ट से संख्यात वहां उत्पन्न होते हैं । सू० १ ॥ સમયે ઓછામાં ઓછા એક, બે, અથવા ત્રણ અને વધારેમાં વધારે સંખ્યાત કાયયોગી ઉત્પન્ન થાય છે, કારણ કે સમસ્ત સંસારી જીમાં કાગને સદા सदलाव २१ २२ छे. "एवं सागारोव उत्ता वि एवं अणागारोवउत्ता वि" से प्रभार સાકારપગવાળા અને અનાકારપગવાળા જી પણ ઓછામાં ઓછા એક, બે અથવા ત્રણ અને વધારેમાં વધારે સંખ્યાત ઉત્પન્ન થાય છે. સૂ૦૧. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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