SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 441
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ० १० सू० ३ रत्नप्रभादिविशेषनिरूपणम् ४२७ देशा:-संपूर्णत्रिमदेशिकस्कन्धापेक्षया त्रयो द्विमदेशिकस्कन्धवदेव३, तदन्येषु त्रिषु त्रयःस्त्रयोभङ्गाः एकवचनबहुवचनभेदात् ? सप्तमस्त्वेकविध एवेति त्रयोदशभङ्गाः, तदुपसंहरबाह-' से तेगडेगं गोयमा ! एवं बुच्चइ-तिप्पएसिए खंधे सिय देशिस्कंध में तेरह भंग बनते हैं। इनमें से पहेले के तीन भंग तो सम्पूर्ण स्कंध की अपेक्षा से है। फिर आत्मा और नो आत्मा के साथ तीन भंग अर्थात् चौथा, पांचवां और छठा ये तीन भंग बनते हैं फिर आत्मा और अवक्तव्य के साथ तीन भंग, सातवां, आठवां और नव वां' बनते हैं। फिर नो आत्मा और अवक्तव्य के साथ तीन भंग (दस वां, ग्यारहवां, बारहवां) यनते है । आत्मा एक, नो आत्मा एक और अवक्तव्य एक यह आत्मा आदि को एकवचन रखने से त्रिसंयोगी तेरहवां भंग बनता है १३। त्रिप्रदशी स्कंध में तीन ही प्रदेश होने के कारण-किसी भी तरह बहुवचन नहीं आ सकता है। अतः यह एक ही भंग बनता है। आशय यह है कि त्रिप्रदेशिी स्कंध में तेरह भंग धनते हैं उनमें से तीन भंग तो सम्पूर्ण स्कंध की अपेक्षा से बनते हैं। जिनकी व्याख्या (स्पष्टता) पहले कर दी गई है। आगे आत्मा और नो आत्मा के साथ द्विसंयोगी तीन भंग बनते हैं। उनमें से 'आत्मा एक और नो आत्मा एक' यह भंग जय त्रिप्रदेशिक स्कंध विप्रदेशावगाद (दो आकाश प्रदेश पर स्थित) होता है तष दोनों तरफ एकवचन रहते हुए बनता है । जब त्रिप्रदेशी स्कंध त्रिप्रदेशावगाढ हो तब 'आत्मा एक और नो आत्मा बहुत' तथा 'आत्मा बहुत और नो आत्मा एक' ये दो भंग (पांचवां और छठा) बनते हैं। इसी प्रकार 'आत्मा और अवक्तव्य' के साथ तीन भंग तथा 'नो आत्मा और अवक्तव्य के साथ तीन भंग बन जाते हैं। किन्तु दोनों तरफ बहुवचन वाला भंग नहीं बनता है क्यों कि यह त्रिप्रदेशी स्कंध है। अतः दोनों तरफ बहुवचन नहीं आ सकता है। किन्तु आगे चतु प्रदेशी आदि स्कंधों में दोनों तरफ बहुवचन वाला भंग बन सकता है । से तेणटेणं गोयमा! एवं बुच्चा, तिप्पएसिए खंधे सिय છે. અહીં પૂર્વોકત સાત ભાંગાઓમાં જે પહેલાં ત્રણ ભાંગાઓ છે, તેઓ સમસ્ત ત્રિપ્રદેશિક સ્કંધની અપેક્ષાએ પ્રકટ કરાયા છે. દ્વિપ્રદેશિક સ્કંધમાં જેવાં ત્રણ ભાંગાઓ પહેલાં બતાવવામાં આવ્યા છે, એવા જ આ ત્રણ ભાંગાઓ છે. બાકીના ત્રણ ભાંગાઓમાં જે અવાક્તર ત્રણ ત્રણ ભાંગાઓ કહેવામાં આવ્યા છે, તે એકવચન અને બહુવચનની અપેક્ષાએ કહેવામાં આવ્યા છે. તથા જે સાતમે ભાંગે છે તેમાં કઈ અવાન્તર ભેદ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy