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________________ કરફ भगवतीसूत्रे नो आत्मानौ च - अपरूपौ अवक्तव्यः - आत्मा इति च नो आत्मा इति च युगपद्व्यपदेष्टुमशक्यः १२, 'देसे आउट्ठे सम्भावपज्जवे देसे आइडे असम्भाववज्जवे देसे आहे तदुभयपज्जवे तिप्पएसिए खंधे आया य नो आया य, अवत्सव्वं आयाइय, नो आवादय १३, यदा देशः एकः आदिष्टः सद्भावपर्यवः, देशः अपरः आदिष्टः असद्भावपर्यंत्रः, देशः अन्यस्तृतीयः आदिष्टः तदुभयपर्यवस्तदा त्रिदेशिकः स्कन्धः आत्मा च सद्रूपः नो आत्मा च असद्रूप, अवक्तव्यः - आत्मा सद्रूप इति च नो आत्मा - असद्रूप इति च युगपद्व्यपदेष्टुमशक्यः १३, तथा च त्रिम देशिक स्कन्धे त्रयोदश उपर्युक्ता भङ्गा भवन्ति तत्र पूर्वोक्तेषु सप्तसु प्रथमाः सकला दुरूप होता है और आत्मा नो आत्मा इन शब्दों द्वारा वह युगपत् कहा जाने वाला नहीं होने के कारण एकदेश से अवक्तव्य भी है, अतः यहां नो आत्मा अनेक और अवक्तव्य एक ऐसा बारहवां भंग है | १२| 'देसे आइडे सम्भावपज्जवे, देसे आइट्ठे असम्भावपज्जवे देसे आइट्ठे तदुभयपज्जवे तिप्पए सिए खंधे आया य नोआया य अवत्तव्यं आयाइय नो आधाइय १३ ' जब त्रिप्रदेशिक स्कन्ध का सद्भावपर्यायवाला एकदेश आदिष्ट होता है तथा जब असद्भावपर्यायवाला उसका दूसरा देश आदिष्ट होता है एवं जब उसका तदुभयपर्यायवाला एक तीसरा देश आदिष्ट होता है तब वह त्रिप्रादेशिक स्कन्ध सद्रूप होता है, असद्रूप भी होता है और सद्रूप असद्रूप इन शब्दों से युगपत् बोले जाने वाला नहीं होने के कारण अवक्तव्य भी हो जाता है इसलिये एक आत्मा एक अनात्मा और एक अवक्तव्य ऐसा यह तेरहवाँ भंग है १३ । इस प्रकार से ये तेरह भंग त्रिप्रदेशिक स्कंध में प्रकट किये गये हैं।' अर्थात् त्रिप्र હાય છે અને આત્મા, ના આત્મા આ બન્ને શબ્દો દ્વારા એક સાથે અવાચ્ય डावानेारये व्यवहूतव्य पशु थाई लय छे. (१३) “" देसे आइट्टे सन्भावपज्जवे, देखे आइट्टे असब्भावपज्जवे, देसे आइट्ठे तदुभयपज्जवे तिप्पएसिए खंधे आया य नो आयाय अवत्तव्यं आयाइय नो आयाइय " क्यारे त्रिअदेशि २४धना सहભાવપર્યાયવાળા એકદેશ આદિષ્ટ થાય છે, તથા જ્યારે અસદ્ભાવપર્યાયવાળા તેના બીજો દેશ આષ્ટિ થાય છે અને જ્યારે તેના તદુભય (સન્દૂરૂપઅસરૂપ અને) પર્યાયવાળા એક ત્રીજો દેશ આદિષ્ટ થાય છે, ત્યારે તે ત્રિપ્રદેશિક કધ સદ્ગુરૂપ પણુ હાય છે, અસરૂપ પણ હાય છે અને સરૂપ, અસરૂપ શબ્દો વડે એક સાથે અવાચ્ય હાવાને કારણે અવકતવ્ય પણ હોય છે. આ પ્રકારના આ ૧૩ લાંગાએ ત્રિપ્રદેશિક ધમાં પ્રકટ કરવામાં આવ્યા શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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