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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ० १० सू० ३ रत्नप्रभादिविशेषनिरूपणम् ४२१ आत्मा-स्वपर्यायापेक्षया सद्यो भवति १, परस्य चतुष्पदेशिकादिस्कन्धान्तरस्य पर्यायैः आदिष्टे-आदेशे सति नो आत्मा--अनात्मा परपर्यायापेक्षया असद्पो भवति२, तदुभयस्य स्वपरोभयपर्यायैः आदिष्टे आदेशे सति अवक्तव्यं वस्तु भवति-आत्मा इति च नो आत्मा इति चशब्देन युगपद्व्यपदेष्टुमशक्यं भवति३, "देसे आइढे सम्भावपज्नवे, देसे आइटे असम्भावपज्जवे तिप्पएसिए खंधे आया य नो आया य४' यदा देशः एकः आदिष्टः एकापेक्षया सद्भावपर्यवः देशः अपरः आदिष्टः असद्भावपर्यवः तदा त्रिमदेशिकः स्कन्धः आत्मा-सद्पश्व नो आत्माअनात्मा असद्पश्च त्रयाणां प्रदेशानां प्रदेशद्वयावगाहत्वादुभयत्रैकवचनम् ४, 'देसे आदिहे सम्भावपज्जवे देसा आइट्ठा असम्भावपज्जवा तिप्पएसिए खंधे आया य नो आयाओ य५' यदा देशः एकः आदिष्टः सद्भावपर्यवः, देशौ आदिष्टौ अमद्भाआदिष्ट होने पर वह अवक्तव्य होता है क्योंकि इन शब्दों द्वारा वह एक साथ कहा नहीं जा सकता है ३ । 'देसे आइडे सम्भावपज्जवे, देसे आइट्टे असम्भावपज्जवे तिप्पएसिए खंधे आया य नो आया य" जब त्रिप्रदेशिक स्कंध अपने एकदेशकी अपेक्षा से आदिष्ट होता है-तब वह उस सद्भाव पर्याय वाले देश की अपेक्षा से सद्र है, और असद्भाव पर्याय वाले दूसरे देश की अपेक्षा से आदिष्ट होने पर असद्रूप है इसलिये त्रिप्रदेशिक स्कन्ध कथंचित् आत्मा कथंचित् नो आत्मा रूप है यह चौथा भंग है " 'देसे आइट्टे सम्भावपज्जवे देसा आइट्ठा असम्भावपज्जवा तिप्पएसिए खधे आया य नो आयाओ य५'जय त्रिप्रदेशिक स्कन्ध अपने एकदेश से आदिष्ट होता है तब वह उसकी अपेक्षा सद्भावपर्याय वाला होने से सद्प है और जब-अनेक असद्भावपर्यायों वाले अनेक देशों તે તે અવકતવ્ય રૂપ છે, કારણ કે આત્મા ને આત્મા શબ્દ વડે તે એક સાથે વા હેતે નથી પહેલાં ત્રણ ભાંગાનું આ પ્રકારનું સ્પષ્ટીકરણ કરીને, वे याथा मांगानु २५०टी४२५ ४२वामां आवे छे-“देसे आइटे सम्भावपज्जवे, देसे आइट्रे असम्भावपज्जवे तिप्पएसिए खंधे आया य नो आया य४" न्यारे ત્રિપ્રદેશિક સ્કંધને તેના એકદેશની અપેક્ષા એ વિચાર કરવામાં આવે છે, ત્યારે તે સદ્ભાવ પર્યાયવાળા દેશની અપેક્ષાએ સહરૂપ છે અને અસદ્દભાવ पर्यायवाणा भीत शनी अपेक्षाये मस६३५ छे. (५) " देसे आइडे सभा. वपज्जवे देसा आइछा अखब्भावपउजवा तिप्पएसिए खंधे आया य नो आयाओ य" જ્યારે વિપ્રદેશિક સ્કંધને એક દેશની અપેક્ષાએ વિચાર કરવામાં આવે છે, ત્યારે સદ્ભાવ પર્યાયવાળા એકદેશની અપેક્ષાએ તે સરૂપ હોય છે, અને જ્યારે અનેક અસદુભાવ પર્યાયવાળા અનેક દેશની અપેક્ષાએ તે આદિષ્ટ થાય શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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