SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 434
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४२० भगवतीसूत्रे एवं वुच्चइ-तिप्पएसिए खंधे सिय आया एवं चेत्र उच्चारेयव्वं जाव सिय आया य नो आया य अत्तव्यं आयाइय नो आयाइय ? ' हे भदन्त ! तत्-अथ केना. र्थेन एवमुच्यते-त्रिपदेशिकः स्कन्धः स्यात् आत्मा-सद्रूपः, एवमेव-पूर्वोक्तरीत्यैव उच्चारयितव्यं वक्तव्यं यावत् स्यात् नो आत्मा, स्यात् अक्तव्यम्-आत्मा इति च नो आत्मा इति च इत्यादि त्रयोदश उपयुक्ता भङ्गा बोध्याः। तदन्तिममाह स्यात् आत्मा च नो आत्मा च अवक्तव्यः-आत्मा इति च नो आत्मा इति चेति१३। भगवानाह-गोयमा ! अप्पणो आइहे आया१, परस्स आइटेनो आया२, तदुभयस्स आइठे अवत्तव्यं आयाइय नो आयाइय ३' हे गौतम ! त्रिपदेशिकः स्कन्धः आत्मनः स्वस्य त्रिप्रदेशिक स्कन्धस्य वर्णादिपर्यायः आदिष्टे-आदेशे सति हैं-'से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ, तिप्पएसिए खधे सिय आया एवं चेव उच्चारेयव्वं जाव सिय आया य नो आया य अवत्तववं आयाइय नो आयाइय' हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि त्रिमदेशिक स्कंध कथंचित् सद्रूप है इत्यादि सब "वह कथंचित् सद्रूप भी है कथंचित् असद्रूप भी है और अवक्तव्य रूप भी है" इस १३ तेरहवें भंग तक कहना चाहिये इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा! अप्पणो आइडे आया' हे गौतम ! त्रिप्रदेशिक स्कंध जब अपनी वर्णादि पर्यायों से आदिष्ट होता है तब वह अपनी पर्यायों की अपेक्षा से सद्प है ? और 'परस्स आइटे नो आया' दूसरे चतुष्प्रदेशिकादि स्कन्ध की अपेक्षा से आदिष्ट होने पर वह नो आत्मा-असदुरूप है २। तथा 'तदुभयस्स -भाइहे अवत्तव्यं आया इय नो आयाइय' स्वपर्याय की अपेक्षा से बुच्चइ, तिप्पएसिए खंधे सिय आया एवंचेव उच्चारेयव्वं जाव सिय आया य नो आया य अवत्तव्वं आयाइय नो आयाइय" भगवन् ! मा५ ॥ १२ એવું કહે છે કે ત્રિપ્રદેશિક સ્કંધ કથંચિત્ સદુરૂપ છે, આ પહેલા ભાંગાથી શરૂ કરીને “ તે કથંચિત્ સદુરૂપ પણ છે, કથંચિત્ અસરૂપ છે અને અવકતવ્ય રૂપ પણ છે.” આ તેરમાં ભાંગા પર્વતના કથનને પ્રશ્નમાં આવરી લેવું જોઈએ __ महावीर प्रभुन। उत्तर-" गोयमा ! अप्पणो आइटे आया । गौतम! જ્યારે પિતાના વદિ પર્યાની અપેક્ષાએ ત્રિપદેશિક સકંધની વિવા કરાય छ, त्यारे तपाताना पर्यायानी अपेक्षा २६३५ गाय छ, मन "परस्स आइटे नो आया" यतुप्रशि४ मा धनी अपेक्षा अथित थाय, तनमात्मा ३५ (मस३५) गाय छ, “तदुभयरस आइट्रे अवत्तव्वं आयाइय नो आयाइय" तथा २१५र्याय भने ५२५र्यायनी अपेक्षा ४थत थाय, શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy