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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ० १० सू० ३ रत्नप्रभादिविशेषनिरूपणम् ४१९ य११' स्यात् नो आत्मा असदरूपश्च अक्तव्यौ-आत्मानौ च सद्रूपौ नो आत्मानौ च-असदुरूपौ इति च शब्देन युगपद् व्यपदेष्टुमशक्यौ ११, 'सिय नो आयाओ य अवत्तव्यं आयाइय नो आयाइय१२' स्यात् नो आत्मानौ असदसौ च, अवक्तव्य:आत्मा-सद्रूप इति च नो आत्मा असद्रूप इति च युगाद् व्यपदेष्टुभशक्यः१२, 'सिय आया य नो आया य अतयं आयाइय नो आयाइय१३' स्यात् आत्मा सद्रूपश्च नो आत्मा-अनात्मा असद्रूपश्च, अवक्तव्यः-आत्मा इति च नोआत्मा अनात्मा असद्पश्चेति च युगपद् व्यपदेष्टुपशक्यः१३। अत्र त्रयोदशस्वपि भङ्गेषु त्रिपदेशिकः स्कन्धः इत्यस्य सम्बन्धोऽबसेयः, एवं त्रिषदेशिके स्कन्धे त्रयोदशभङ्गाः १३। गौतमस्तत्र कारणं पृच्छति-से केणद्वेणं भंते ! नो आया य अवत्तव्याइ आयाओ य नो आयाओ य११ कथंचित् एक असद्प है और अनेक अवक्तव्य आत्मा रूप से एवं अनात्मा रूप से अवक्तव्य भी हैं ११, 'सिय नो आयाओय, अवत्तव्वं आयाइय नोआया इच' कथंचित् अनेक नो आत्मारूप और एक अवक्तव्य-आत्मा तथा नो आत्मारूप से युगपत् कहा जा नहीं सकने के कारण अवक्तव्यरूप है १२, 'सिय आया य नो आया य अवत्तव्वं आयाइय नो अयाइय १३, कथंचित् यह सद्रूप भी है, कथंचित् असद्रूप भी है, एवं अबक्तव्य-सदरूप तथा असद्रूप इन शब्दों द्वारा युगपत् कहा नहीं जा सकने के कारण अवक्तव्य भी है १३ यहां इन तेरह भंगों में त्रिप्रदेशि स्कंध का संबंध जानना चाहिये। त्रिप्रदेशिकस्कन्ध में इन १३ तेरह भंगो के होने में क्या कारण है ? इसी बात को गौतम प्रभु से यों पूछते आया य अवत्तव्वाइं आयाओ य नो आयाओ य११” (११) या२४ ते धनी અપેક્ષાએ અસદુરૂપ પણ છે, અને પ્રદેશની અપેક્ષાએ અનેક આત્મા રૂપે भने भनेर भनाभा ३ अ१४०य ५४ छे. "सिय नोआयाओ य, अवत्तव्यं आयाइय नो आयाइय१२" (१२) या२४ ते प्रशानी अपेक्षा अने न આત્મા રૂપ છે, તથા આત્મા અને આત્મા રૂપે એક સાથે અવાચ્ચ डोपान ४२ मतय ३५ ५४४ छ. " सिय आया य नो आया य अवतव्य आयाइय नो आयाइय१३” (13) थारे ते स६३५ ५५ डाय छे, मसह. રૂપ પણ હોય છે અને સરૂપ-અસરૂપ આ બે શબ્દો દ્વારા એક સાથે અવાચ્ય હોવાને કારણે અવક્તવ્ય રૂપ પણ છે. ત્રિપ્રદેશિક સકંધમાં આ પ્રકારના ૧૩ ભાંગાઓ (વિક૯પ) સંભવી શકે છે. હવે ત્રિપ્રદેશિક સ્કંધમાં આ ૧૩ ભાંગાઓને સદ્ભાવ કયા કારણે હોય છે, તે જાણવા માટે ગૌતમ स्वामी महावीर प्रसुने मा प्रमाणे प्रत पूछे छे-" से केणटेणं भंते! एवं શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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