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________________ भगवतीसूत्रे अनात्मा-असद्प इति च शब्देन युगपद् वक्तुमशक्यत्वात् अत्र द्वयोः स्थानयोरेक वचनं त्रयाणां पदेशानामाकाशमदेशद्वयावगाहित्वापेक्षयेति पूर्व उक्तमेव७, 'सिय आयाइय अवत्तपाइं आयाओ य नो आयाओ य८' स्यात् आत्मा सद्रूप इति च अवक्तव्यौ-आत्मानौ-सद्पो च नो आत्मानौ-असदुपौ १८, सिय आयाओ य अवत्तव्यं आयाइय नो आयाइय९' स्यात् आत्मानौ सद्रूपौ च अवक्तव्यःआत्मा-सद्रूप इति च नो-आत्मा-अप्तद्रूप इति च शब्देन युगपद्व्यपदेष्टुमशक्यः९, 'सिय नो आया य अवत्तव्व आयाइय नो आयाइय१०' स्यात् नो आत्माअसद्रूपश्च, अवक्तव्य:-आत्मा सद्रूप इति च नो आत्मा-असद्प इति च शब्देन युगपद्व्यपदेष्टुमशक्यः, अत्रापि द्वयोः स्थानयोरेकवचनमाकाशपदेशयावगाहनापेक्षयैव१०, 'सिय नो आया य अवत्तबाई आयामो य नो आयाओ आया य अवत्तवं आयाइय नो आयाइय ७' कथंचित् यह सदरूप है और कथंचित् आत्मा एवं नो आत्मा इन शब्दों द्वारा युगपत् नहीं कह सकने के कारण अवक्तव्य भी है ७, 'सिय आयाइय अवत्तव्वाई, आयाओ य नोआयाओं य ८' कथंचित् एक सद्रूप है और अनेक अवक्तव्य सद्रूप और असदुरूप इन शब्दों द्वारा युगपत् नहीं कहा जा सकने के कारण अवक्तव्य रूप भी है,८ 'सिय आयाओ य अवत्तन्वं आयाइय' नो आयाश्य कथंचित् अनेक सदरूप हैं और एक अवक्तव्य सद्रूप एवं असदरूप इन दोनों शब्दों द्वारा युगपत् नहीं कहा जा सकने के कारण अवक्तव्य रूप है ९, 'सिय नो आया य अवत्तन्वं आयाइय नोआयाइय १० कथंचित् एक असदुरूप हैं और एक अवक्तव्य-आत्मा नो आत्मा रूप से एक साथ कहा नहीं जा सकने के कारण अवक्तव्य रूप भी है १० 'सिय સદુરૂપ પણ છે, અને કથંચિત્ આત્મા અને તે આત્મા શબ્દો વડે એક साथे भवाय वान रणे मतव्य ३५ ५५ छे. सिय आयाइय अवत्तव्वाइं, आयाओ य नो आयाओ य८" (८) या२४ २४ धनी अपेक्षा ते સદુરૂપ છે, અને પ્રદેશોની અપેક્ષાએ તે સરૂપ અને અસરૂપ આ શબ્દ द्वा२। मे४ साथ भवाय पाने २२ मतव्य ३५ ५५ छे. “सिय आयाओय अवत्तव्यं आयाइय नो आयाइय९" (6) ज्या२४ प्रशानी अपेक्षा તે સદ્દરૂપ પણ હોય છે અને સ્કંધની અપેક્ષાએ તે સદૂરૂપ અને અસરૂપ આ બે શબ્દો દ્વારા એક સાથે અવકતવ્ય હોવાને કારણે અવક્તવ્ય રૂપ ५५ हाय छे. " सिय नो आया य अवतव्वं आयाइय नो आयाइय१०” (१०) તે સ્કંધની અપેક્ષાએ કથંચિત્ અસદુરૂપ પણ છે અને આત્મા નો આત્મા १ मे साथे अवाप्य पान १२ मतव्य ३५ ५५ छे. “ सिय नो શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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