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________________ ४२२ भगवतीसूत्रे वपर्यवौ, तदा त्रिपदेशिकः स्कन्धः आत्मा सद्पश्च, नो अत्मानौ असदुरूपौ च९, 'देसा आइट्टा सब्भावपज्जवा देसे आइटे अमभावपज्जवे तिप्पएसिए खंधे आयाओ य नो आया य६' यदा देशौ आदिष्टौ, सद्भावपर्यवौ, देशः एका आदिष्टः असद्भापर्यवः तदा त्रिप्रदेशिकः स्कन्धः आत्मानौ सद्रूपौ च, नो आत्माअनात्मा असदरूपश्च भवति६, 'देसे आइहे सब्भावपज्जवे देसे आइटे तदुभयपज्जवे तिप्परसिए खंधे आया य आत्तव्यं आयाइय नो आयाइय७' यदा देशः एक आदिष्टः सद्भावपर्यवः देशः आरः आदिष्ट स्तदुभयपर्यवः सद्भावासद्भावो. भयपर्यवः तदा त्रिपदेशिकः स्कन्धः आत्मा सद्पश्च, अबक्तव्यः-आत्मा इति च से आदिष्ट होता है तब वे पर्याय उस में न होने के कारण वह अनेक असदुरूप पर्यायों वाला है एक आत्मा और अनेक नो आत्माएँ इस प्रकार का यह पांचवां भंग हुभा ५। 'देसा आइट्ठा सम्भावपज्जवा देसे आइढे असम्भावपनवे तिप्पएसिए खंधे आयाओ य नो आया य ६' जब यह त्रिप्रदेशिक स्कन्ध अपने अनेक सद्भाव पर्यायों वाले देशों से आदिष्ट होता है तब वह कथंचित् अनेक सद्रूपों वाला है, और जब वह असद्भावपर्याय वाले अपने एकदेश से आदिष्ट होता तब वह असद्रूप वाला है इसप्रकार का अनेक आत्माएँ और एक नो आत्मा यह छठा भंग हुआ ६, 'देसे आइठे सम्भावपज्जवे, देसे आइढे तदु. भयपज्जवे तिप्पएसिए खधे आया य अवत्तव्वं आयाइय नो आयाइय ७ जब त्रिप्रदेशिक स्कन्ध अपने सद्भावपर्याय वाले एकदेश से आदि ष्ट होता है-तब वह सदुरूप है और जब वह सद्भावपर्याय वाले दूसरे देश से आदिष्ट होता है तब ये उभय पर्यायें उसकी एक साथ शब्द છે, ત્યારે તે પર્યા તેમાં ન હોવાને કારણે તે અનેક અસરવાળો હોય છે. (6) “ देसा आइद्वा सब्भावपउजवा, देसे आइडे असब्भावपज्जवा तिप्पएसिए खंधे आयाओ य नो आया य६” न्यारे ते विहशि धना तना भने સદભાવ પર્યાવાળા દેશોની અપેક્ષાએ વિચાર કરવામાં આવે છે, ત્યારે તે કથંચિત્ અનેક સરૂપવાળે છે, અને જ્યારે તેને અસદ્દભાવ પર્યાયવાળા એકદેશની અપેક્ષાએ વિચાર કરવામાં આવે છે, ત્યારે તે અસદુરૂપવાળે (७) "देसे आइवे सब्भावपज्जवे, देसे आइढे तदुभयपज्जवे तिप्पएसिए बंधे आया य अवत्तव्यं आयाइय नो आयाइय७" न्यारे विशि: धनी तनी સદુભ વ૫યવાળા એક દેશની અપેક્ષાએ વિચાર કરવામાં આવે છે, ત્યારે તે સદૂરૂપ છે, અને જ્યારે તે સદ્ભાવપર્યાયવાળા અને અસદ્ભાવપર્યાયવાળા શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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