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________________ ३७२ भगवतीसूत्रे लाघवार्थम् अतिदिशन्नाह-‘एवं जहा कसायायाए बत्तवया भणिया तहा जोगायाए वि उवरिमाहिं समं भाणियचाओ' एवं-पू#क्तरीत्या, यथा कपायात्मनो वक्तव्यता भणिता तथा योगात्मनोऽपि उपरितनैः समं भणितव्या वक्तव्या तथा च यस्य योगात्मत्वं भवति तस्य उपयोगात्मत्वं नियमतो भवति, यथा सयोगिनाम् , यस्य पुनरुपयोगात्मत्वं भवति तस्य योगात्मत्वं स्यादस्ति यथा सयोगिनाम् , स्यान्नास्ति यथा अयोगिनां सिद्धानां च, तथा यस्य योगात्मत्वं भवति तस्य ज्ञानात्मत्वं स्यादस्ति यथा सम्यग्दृष्टोनाम् , स्यानास्ति यथा मिथ्यादृष्टीनाम् , यस्य ज्ञानात्मत्वं भवति, तस्यापि योगात्मत्वं स्यादस्ति यथा सयोगिनाम् , है और केवली में वीर्यात्मता के होने पर भी कषायात्मता नहीं होती है। 'एवं जहा कसायायाए वत्तव्वया भणिया, तहा जोगायाए वि उपरिमाहिं सम भाणियव्यामओ, पूर्वोक्त पद्धति के अनुसार जिस प्रकार से कषायात्मा की वक्तव्यता कही गई है, उसी प्रकार से योगात्मा की भी उपरितन पांच पदों के साथ वक्तव्यता कहनी चाहिये यथा जिस में योगात्मा होती है, उसमें उपयोगात्मता नियम से होती है, जैसे सयोगियों में, परन्तु जिसमें उपयोगात्मता होती है उसमें योगात्मता होती भी है और नहीं भी होती है होती है, यह सहयोगियों में, और नहीं होती है अयोगियों एवं सिद्धों में। इस प्रकार से जिसमें योगात्मता होती है उसमें ज्ञानात्मता होती भी है, और नहीं भी होती है। होती है यह सम्यग्दृष्टियों में और नहीं होती है, मिथ्यादृष्टियों में । इसी प्रकार से जिसमें ज्ञानात्मता होती है उसमें योगात्मता होती भी है और नहीं भी होती है । ज्ञानात्मता के साथ योगात्मता सयागियों में होती है और वीमिता छti ५ ४ायात्मता ती नथी. “ एवं जहा कसायायाए वत्तव्वया भणिया, तहा जोगायाए वि उवरिमाहि सम भाणियवाओ" २ मारे કષાયાત્મતાની પછીનાં છ પદોની સાથે વક્તવ્યતા કહેવામાં આવી છે. એજ પ્રકારે ગાત્મતાની પણ પછીનાં પાંચ પદે સાથે વક્તવ્યતા કહેવી જોઈએ. જેમ કે જે જીવમાં ગામતા હોય છે, જીવમાં ઉપગાર્માતા નિયમથી જ હોય છે, દાખલા તરીકે સગીઓમાં પરંતુ જે જીવમાં ઉપયોગાત્મતા હોય છે, તે જીવોમાં ચગાત્મતા હોય છે પણ ખરી અને નથી પણ હતી, દાખલા તરીકે સચોગીઓમાં હોય છે અને અગીઓ અને સિદ્ધોમાં હતી નથી એજ પ્રમાણે જે જીવમાં ગાત્મતા હોય છે, તે જીવમાં જ્ઞાનાત્મતા હોય છે પણ ખરી અને નથી પણ હતી જેમ કે સમ્યગ્દષ્ટિએમાં હોય છે, શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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