________________
३६६
भगवती सूत्रे
9
विसमं ' एवं - पूर्वोक्तरीत्या वीर्यात्मनाऽपि समं बोध्यम्. तथा च यथा द्रव्यात्मनवारित्रात्मना सह भजना प्रतिपादिता नियमच प्रतिपादित स्तथैव वीर्यात्मनाऽपि सह द्रव्यात्मनो भजना नियमश्व प्रति त्तव्यः एवं च यस्य द्रव्यात्मत्वं तस्य वीर्यानास्ति यथा करणार्यापेक्षा सिद्धस्य, तदन्यस्य तु वर्तते इति भजना, वीर्यात्मनस्तु द्रव्यात्मत्वमस्त्येक यथा संसारिजीवानाम् अथ कपायात्मना सह अन्यानि पदानि प्ररूपयितुमाह-' जस्स णं भंते ! कसायाया तस्स जोगाया पुच्छा' गौतमः पृच्छति - हे भदन्त ! यस्य खलु कषायात्मत्वं भवति तस्य किं योगात्मत्वं भवति ? एवं यस्य योगात्मत्वं भवति तस्य किं कषायात्मत्वे भवति १ इति पृच्छा, वहां द्रव्यात्मा नियम से होती हैं क्यों कि चारित्र वालों में आत्मा का अवश्यंभाव होता है 'एवं वीरियायाए वि समं' जिस प्रकार द्रव्यात्मा की चरित्रात्मा के साथ भजना कही गई है और चरित्रात्मा की द्रव्यात्मा के साथ अवश्यंभाविता कही गई है उसी प्रकार से द्रव्यात्मा के भी साथ वीर्यात्मा की भजना और वीर्यात्मा के साथ द्रव्यात्मा का नियम- अविनाभाव संबंध जानना चाहिये इस प्रकार जिसमें क्रव्यात्मा है उसमें वीर्यात्मा नहीं भी होती है जैसे सकरण कार्य करनेरूप वीर्य की अपेक्षा से यह वीर्यात्मा सिद्धों के नहीं होती है। तथा इनसे अतिरिक्तों में यह द्रव्यों के साथ होती है परन्तु वीर्यात्मा के साथ द्रव्यात्मा नियमतः होती है । जैसे समस्त संसारी जीवों के ।
अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं- 'जस्स णं भंते! कसायाया तस्स जोगाया पुच्छा' हे भदन्त ! जिस जीव में कषायात्मता होती है उस जीव के क्या योगात्मा होती है ? तथा जिस जीव में योगात्मता होती है उस जीव में क्या कषायात्मता होती है ? इसके उत्तर में प्रभु
66
v एवं बीरिया व समं " ४ प्रमाणे हे मां द्रव्यात्मता होय छे, તે જીવમાં વીર્યંમતા હાય છે, પશુ ખરી, અને નથી પણ હાતી,જેમ કે સકરણ-ઇન્દ્રિય સહિત–વીયની અપેક્ષાએ આ વીર્યાત્મતા સિદ્ધોમાં હેાતી નથી, પરન્તુ સિદ્ધ સિવાયના જીવેામાં દ્રશ્યાત્મતાની સાથે સાથે વીંટ્યમતાના પશુ સદ્ભાવ રહે છે. પરન્તુ જે જીવમાં વીર્યંત્મતાના સદ્દભાવ હોય છે, તે જીવમાં દ્ભવ્યાત્મતા અવશ્ય હાય છે. જેમ કે સમસ્ત સ`સારી જીવામાં વીયંમત્તા અને દ્રાત્મતા, ખન્નેના સદ્દભાવ હાય છે.
गौतम स्वामीनो प्रश्न- " जस्स णं भंते ! कलायाया, तस्स जोगाया पुच्छा " હું ભગવન ! જે જીવમાં કષાયાત્મતા હોય છે, તે જીવમાં શું ચેાગામતા પણ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦