SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 381
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ०१० सू०१ आत्मस्वरूपनिरूपणम् ३६७ भगवानाह-'गोयमा ! जस्स कसायाया तस्स जोगाया नियमं अत्थि, जस्स पुण जोगाया तस्स कसायाया सिय अस्थि सिय नस्थि' हे गौतम ! यस्य कषायात्मवं भवति, तस्य योगात्मत्व नियमादस्ति, सकपायाणामयोगित्वाभावात् , किन्तु यस्य पुनर्योगात्मत्वं भवति तस्य कषायात्मत्वं स्यादस्ति, स्यान्नास्ति, सयोगानां सककहते हैं-'गोयमा! जस्ल कसायाया तस्स जोगाया नियम अस्थि' जस्स पुण जोगाया तस्स कसायाया सिय अत्थि सिय नत्थि' हे गौतम ! जिस जीव में कषायात्मता होती है, उस जीव में नियम से योगात्मता होती है, परन्तु जिसमें योगात्मा होती है उसमें कषायात्मता होती भी है और नहीं भी होती है। तात्पर्य कहने का यह है कि कषायात्मता के साथ जिस प्रकार से योगात्मता का अविनाभाव संबंध है उम प्रकार से वह योगा. त्माके साथ कषायात्मता का नहीं है "यत्र २ कषापात्मत्वं तत्र २ योगात्मत्यम्" ऐसा नियम 'सकषाय जीवों में अयोगात्मना नहीं होती है परंतु यत्र २ रोगात्मत्वंतत्र २ सकषायात्मत्व" ऐसा नियम इस लिये नहीं बनता है कि योगात्मता वाले जीव कषाययुक्त भी होते हैं और कषाय विना के भी होते हैं। ग्यारहवें, बारहवें एवं तेरहवें गुणस्थान में योगात्मता तो है, परन्तु वहाँ कषायात्मता नहीं है । दशवे आदि नीचे હોય છે ખરી? તથા જે જીવમાં ગાત્મતા હોય છે, તે જમાં શું કષાયાત્મતા પણ હોય છે ખરી ? महापा२ प्रभुन। उत्त२-“गोयमा ! जस्स कसायाया, तस्स जोगाया नियम अस्थि "गीतम! २ पायात्मता डाय छ, त म योगात्मता नियमथी । डाय छ, “ जस्स पुण जोगाया तस्स कसायाया सिय अस्थि सिय नत्थि" ५२न्तु २ मां योगात्मता हाय छे, ते षायामा डाय છે પણ ખરી અને નથી પણ હતી આ કથનનું તાત્પર્ય એ છે કે-જે કષાયાત્મતાની સાથે યોગાત્મતાનો અવિનાભાવ સંબંધ છે, એ યોગાત્મતાની साथे पायात्मतान। समय नथी. “यत्र यत्र कषायात्मत्वं तत्र तत्र योगात्मत्वम" " साय wोमा अयोगात्मता ती नथी," मा अारनी नियम तो सनी लय छ, परन्तु " यत्र यत्र योगात्मत्वं सत्र तत्र सकषायात्मत्वं" “જ્યાં જ્યાં ગાત્મતા હોય છે, ત્યાં ત્યાં કષાયાત્મતા પણ હોય છે, એ નિયમ બની શકતો નથી, કારણ કે ગામતાવાળા જ કષાયયુક્ત પણ હોય છે અને કષાય વિનાના પણ હોય છે અગિયારમા બારમાં અને તેરમાં ગુણસ્થાનમાં ગાત્મતાને તો સદુભાવ હોય છે, પણ કષાયાત્મતાને શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy