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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ० ९सू० ५ भव्यद्रव्यदेवायुद्वर्त्तननिरूपणम् ३४१ नवरम्-स्थित्यपेक्षया संस्थिते विशेषस्तु-धर्मदेवस्य संस्थितिः जघन्येन एक समयं शुभभावप्रतिपत्तिसमयानन्तरमेव मरणात् उत्कृष्टेन तु देशोना पूर्वकोटी भवति । ___ अथ अन्तरद्वारमाह-'भवियदच्वदेवस्स णं भंते ! केरइयं कालं अंतरं होइ ?' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! भव्यदिव्यदेवस्य खलु कियन्तं कालम् , अन्तरम्पूर्वभवत्यागानन्तरभवान्तरप्राप्तौ व्यवधानम्, भवति ? भगवानाह-'गोयमा ! जहण्णेणं दसवाससहस्साई अंतोमुहुत्तमम्भहियाई, उक्कोसेणं अणंतं कालं वणस्सइ कालो' हे गौतम ! भगद्रव्यदेवस्य अन्तरम् , जघन्येन दशवर्षसहस्राणि अन्तमुहूर्ताभ्यधिकानि भवन्ति तथाहि भविकद्रव्यदेवो भूत्वा दशवर्षसहस्रस्थितिकेषु यहां प्रकट किया गया है-अर्थात् धर्मदेव की स्थिति की अपेक्षा सस्थिति में ऐसी विषमता है कि धर्मदेव की संस्थिति, जघन्य से एक समय की होती है-क्यों कि अशुभ भाव में जाकर फिर उन अशुभ भावों से निवृत्त होकर शुभ भावों की प्रतिपत्ति के एक समय के बाद ही मरण हो जाता है, तथा उत्कृष्ट से वह देशोनपूर्वकोटि की होती है। ___ अब अन्तरद्वार की सूत्रकार प्ररूपणा करते हैं-'भवियदव्यदेवस्सणं भंते ! केवइयं कालं अन्तरं होइ' हे भदन्त ! भविकद्रव्यदेव का कितने काल का अंतर होता है ? अर्थात्-पूर्वभव के त्याग के बाद भवान्तर प्राप्ति हो जाने पर पुनः भविकद्रव्यदेव की पर्याय में आने तक बीच में कितने काल का अन्तर होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम ! 'जहण्णेणं दसवाससहस्साई अन्तोमुहुत्तमन्भहियाई' भव्यद्रव्यदेव का अन्तर जघन्य से अन्तर्मुहूर्त अधिक दशहजार वर्ष का होता है, यह अन्तर इस प्रकार से जानना चाहिये (भविकद्रव्यदेव ઓછી એક સમયની હોય છે (કારણ કે શુભભાની પ્રતિપત્તિના સમય બાદ જ મરણ થઈ જાય છે) અને ઉત્કૃષ્ટ સંસ્થિતિ દેશનપૂર્વકેટિની હોય છે. હવે સૂત્રકાર અતરદ્વારની પ્રરૂપણું કરે છે– गौतम स्वाभाना प्रश्न-“ भवियवदेवाणं भंते ! केवइयं कालं अंतर होइ ? ३ मा । विद्र०य वनुनी अपेक्षा हुं अतर सु. છે એટલે કે ભવિક દેવની પર્યાયનો ત્યાગ કરીને-ભવાન્તરોમાં ગમન કરીને ફરીથી ભવિદ્રવ્ય દેવ પર્યાયની ઉત્પત્તિમાં કેટલા કાળને આંતરે પડી જાય છે? महावीर प्रसुना उत्तर-" गोयमा! गीतम! ' जहण्णेणं दसवाससहस्साई, अंतोमुहुत्तमब्भहियाइं" लविद्रव्य वने पुनः विद्रव्यनी पर्यायनी પ્રાપ્તિ થવામાં કાળની અપેક્ષાએ ઓછામાં ઓછું દસ હજાર વર્ષ અને એક અંતર્મુહર્ત પ્રમાણુકાળનું અંતર પડી જાય છે. તે અંતરનું સ્પષ્ટીકરણ આ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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