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भगवतीसूत्रे
जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिनि पलियोचमाई' हे गौतम ! भव्यद्रव्य देवस्य भव्यद्रव्यदेव पर्यायावस्थायां कालापेक्षया, जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन तु त्रीणि पल्योपमानि भवन्ति, 'एवं जच्चेत्र ठिई, सच्चेव संचिट्टणा वि जाव भावदेवस्स' एवम् अनया रीत्या, अनेन न्यायेन वा, या चैव स्थितिः - भवस्थितिः पूर्व प्रतिपादिता, साचैवैषां भव्यद्रव्य देवादीनां संस्थितिरपि तत्पर्यायानुबन्धरूपाऽपि प्रतिपत्ता यावत् - नरदेवस्य धर्मदेवस्य देवाधिदेवस्य भावदेवस्य चेति भावः । किन्तु - 'नवरं धम्मदेवस जहण्णेणं एक समयं, उक्कोसेणं देणा पुन्त्रकोडी'
की पर्याय को नहीं छोड़ता हुआ काल की अपेक्षा कब तक भविकद्रव्यदेवरूप से बना रहता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - ' गोयमा ! हे गौतम ! ' जहणेणं अंतो मुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओ माई ' भविकद्रव्यदेव भविकद्रव्यदेव की पर्यायरूप से काल की अपेक्षा कम से कम एक अन्तर्मुहूर्त्त बना रहता है और अधिक से अधिक वह तीन पल्योपम तक बना रहता है ' एवं जच्चेव ठिई, सच्चेव संचिट्ठणा वि जाव भावदेवस्स' इस प्रकार से भवस्थिति भवद्रव्यदेवादिकों की पहिले कही जा चुकी है, वही इनकी तत्पर्यायानुबन्धरूप संस्थिति जाननी चाहिये यावत् नरदेव, धर्मदेव, देवाधिदेव और भावदेव इन देवों की भी संस्थिति उनकी स्थिति के अनुसार जाननी चाहिये। किन्तु धर्मदेव की स्थिति की अपेक्षा संस्थिति में जो अन्तर है वह ' नवरं धम्मदेवस्स जहणणं एक्कं समयं उक्कोसेणं देणा पुग्वकोडी' इस सूत्र द्वारा
“ ભવિક દ્રવ્ય દેવની પર્યાયને છેડયા વિના ” કાળની અપેક્ષાએ કયાં સુધી ભવિકદ્રવ્યદેવ રૂપે રહી શકે છે ?
महावीर प्रभुना उत्तर- " गोयमा ! " हे गौतम! " जहण्गेण अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओमाई ” विद्रव्य हेव, लविद्रव्यदेव ३ये गोछाभां આછા એક અન્તમુહૂત સુધી અને વધારેમાં વધારે ત્રણ પાપમ પ્રમાણુ કાળ સુધી ટકી શકે છે. " एवं जच्चेव ठिई, सच्चेव संचिट्ठणा वि जाव भावदेवरस " मा अक्षरे लव्यद्रव्यदेव याहिनी ने लवस्थिति पडेलां સ્થિતિદ્વારમાં કહેવામાં આવી છે, એજ તેમની તત્પર્યાયાનુબન્ધ રૂપ સંસ્થિતિ સમજવી એટલે કે નરદેવ, ધર્મદેવ, દેવાધિદેવ અને ભાવદેવની સ`સ્થિ તિનું કથન તેમની સ્થિતિના કથન અનુસાર જ સમજવું. પરન્તુ ધ દેવાની स्थिति सने स ंस्थितिमां आ प्रभा तावत छे - "नवर धम्मदेवस्व जहori एकं समयं उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी " धर्मदेवनी संस्थिति श्रोछाभां
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦