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________________ - - प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ० ९ सू० १ देवप्रकारनिरूपणम् २९९ गौतमः पृच्छति-' से केणगुणं भंते ! एवं बुच्चइ-नरदेवा, नरदेवा ? ' हे भदन्त ! तत-अथ, केनार्थेन-केन कारणेन, एवमुच्यते-नरदेवाः नरदेवाः इति? नरदेवशब्दस्य कोऽर्थः इति प्रश्नः, नराणां मध्ये देवाः-आराध्याः, कान्त्यादियुक्ता वा, नराश्च ते देवताश्चेति वा नरदेवा इत्यभिप्रायेण भगवानाह'गोयमा ! जे इमे रायाणो चरंतचकवटी उप्पन समत्तचक्करयणप्पहाणा, नयनिहिपइणो, समिद्धकोसा, बत्तीसं रायवरसहस्साणुजायमग्गा सागरवरमेहलाहिवइणो मणुस्सिदा' हे गौतम ! ये इमे राजाना चातुरन्तचक्रवर्तिनः चतुर्दिगन्तस्वामिनः, उत्पन्नसमस्तचक्ररत्नप्रधाना:-मानसर्वरत्नप्रधानचक्ररत्नाः, अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-' से केणटेणं भंते । एवं बुचइनरदेवा नरदेवा' हे भदन्त ! आप नरदेव नरदेव ऐसा कहते हैं-सो इस नरदेव शब्द का क्या अर्थ है-अर्थात् नरदेव किसको कहते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु इस अभिप्राय से कि " मनुष्यों के बीच में जो आराध्य हो, अथवा कान्त्यादिगुणों से जो युक्त हो, या नररूप से जो देव जैसा हो वह नरदेव है" उत्तर में गौतम से प्रभु कहते हैं-'गोयमा! जे इमे रायाणो चाउरंतचक्कवट्टी, उप्पनसम्मत्तचकरयणप्पहाणा, नवनिहिपइणो, समिद्धकोसा, बत्तीस रायवरसहस्साणुजायमग्गा, सागर वर मेहलाहिवाणो मणुस्सिदा' हे गौतम !जो ये चारदिशाओं के स्वामी होते हैं, जिन्हें सर्वरत्नों में प्रधान चक्ररत्न-प्राप्त होता है, जो नौ "से तेणटेण गोयमा ! एवं बुच्चइ, भवियव्वदेवा, भवियदव्यदेवा" है गौतम! ते २0 में' वाना में प्रानु नाम "भव्यद्रव्य" ह्यु छ. गौतम स्वामीन। प्रश्न-" से केणटुणं भंते ! एवं बुच्चइ, नरदेवा, चर• देवा" इ मापन ! सापेवाना भी प्ररनु नाम " नरहेव" शाही કહ્યું છે એટલે કે નરદેવને અર્થ થાય છે? અને કોને નરદેવ કહે. વામાં આવે છે? મહાવીર પ્રભુને ઉત્તર-મનુષ્યમાં જેઓ આરાધ્ય ગણાતાં હોય છે, અથવા કાતિ આદિ ગુણોથી જેઓ યુક્ત હોય છે, અથવા નરરૂપે જન્મ ધારણ કરવા છતાં પણ જેઓ દેવતુલ્ય છે, તેમને નરદેવ કહેવામાં આવે છે. मा पात सूत्र नीयन सूत्रपा द्वारा व्यत ४१ छ-" गोयमा! जे इमे रायाणो चाउरंतकवट्टी, उप्पन्नसमत्तचक्करयणप्पहाणा, नवनिहिपइणो, समिद्ध कोसा, बत्तीसं रायवरसहस्साणुजायमग्गा, सागरवरमेहलाहिवइणो मणुरिसदा" . ગૌતમ ! જેઓ ચાર દિશાઓના સ્વામી હોય છે, સર્વ રત્નમાં પ્રધાન એવાં શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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