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________________ २०६ भगवतीसूत्रे देशकमारमते 'रायगिहे' इत्यादि, 'रायगिहे जाव एवं वयासी' राजगृहे यावत् नगरे स्वामी समवसृतः, धर्मका श्रोतुं पर्षत् निर्गच्छति, धर्मकथां श्रुत्वा प्रति गता पर्षत् , ततो विनयेन शुश्रूषमाणो गौतमः प्राञ्जलिपुटः पर्युपासीनः, एवम्वक्ष्यमाणपकारेण अबादीत्-'बहुजणे णं भंते ! अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ, जाव परूवेइ' हे भदन्त ! बहुजनः अन्यतीर्थिकः खलु अन्योन्यस्य-परस्परम्-एवंवक्ष्यमाणप्रकारेण, आख्याति, यावत् भाषते, प्रज्ञापयति, प्ररूपयति च-‘एवं खलु राहू चंदं गेहइ. एवं खलु राहू चंदं गेण्हइ, एवं खलु निश्चयेन राहुश्चन्द्रं गृह्णातिअसति, एवं खलु निश्चयेन राहुश्चद्रं गृहाति-प्रसति, 'से कहमेयं भंते ! एवं?' हे भदन्त ! तत् कथमेतत्-अन्यतीर्थिकस्य कथनम्-एवं-सत्यं मन्ये ? अन्यतीथिकस्य ग्रसित होने पर चन्द्र को भी हो सकता है, सो इस आशंका की निवृत्ति के लिये सूत्रकार ने इस छठे उद्देशक को कथन किया है-'रायगिहे जाव एवं वयासी' राजगृह नगर में यावत्-महावीर स्वामी पधारे उनसे धर्मकथा सुनने के लिये परिषद् अपने २ स्थान से निकलकर उनके पास गई प्रभुने धर्मकथा कही-धर्मकथा सुनकर परिषद् पीछे अपने २ स्थान पर चली गई इसके बाद प्रश्न पूछने की अभिलाषावाले गौतम ने दोनों हाथ जोड़कर बड़े विनय के साथ प्रभु से इस प्रकार पूछा-'बहुजणेणं भंते! अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ' हे भदन्त ! अन्य. तीर्थक जन परस्पर में ऐसा कहते हैं, यावत्-भाषण करते हैं, प्रज्ञापित करते हैं, प्ररूपित करते हैं-' एवं खलु राहू चंदं गेण्हइ' एवं खलु राहू चंदं गेण्हइ' राहु चन्द्रमा को ग्रसता है, राहु चन्द्रमा को ग्रसता है सेकहमेयं भंते ! एवं' सो ऐसा अन्यतीर्थिकजनों का यह कथन क्या કસિત થાય ત્યારે ચન્દ્રમાં પણ સંભવી શકે છે, આ આશંકાનું સૂત્રકારે मी निवा२६ ४यु छ-" रायगिहे जाव एवं वयासी" २२ नगरमा મહાવીર પ્રભુ પધાર્યા, પરિષદ નીકળી, ધમકથા સાંભળીને પરિષદ વિખરાઈ ગઈ, ઈત્યાદિ સમસ્ત કથન અહીં ગ્રહણ કરવું જોઈએ ત્યાર બાદ ધર્મતત્વને સાંભળવાની ઈચ્છાવાળા ગૌતમ સ્વામીએ બને હાથ જોડીને વિનયપૂર્વક भसावीर प्रभु मा प्रभारी ५ यु-"बहु जणेणं भंते ! अन्नमन्नस्स एवमाइ. क्खड." मग ! मन्यतथि: ५२९५२मा मे ४३ छे, मेवु लागे शवी प्रज्ञापना ४३ छे मन मेवी ५३५६॥ अरे छ है-" एवं खलु राह चंदं गेण्हइ, एवं खलु राहू चंदं गेहइ” राहु यन्द्रमान श्रास ४२ छ, राई चन्द्रमान श्रास रेछ, “से कहमेयं भंते ! एवं" लगवन् ! अन्य तीर्थ. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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