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________________ भगवतीसूत्रे पेक्षयेत्यर्थः तथैव-नैरयिकवदेव, अवर्णाः, अगन्धाः, अरसा, अस्पर्शाः अवसेयाः। 'एवं जाव चउरिदिया०' एवं-पूर्वोक्तरीत्या यावत्-अप्कायिकाः, तेजस्कायिकाः, वनस्पतिकायिकाः, एकेन्द्रियाः द्वीन्द्रियाः, त्रीन्द्रियाः, चतुरिन्द्रियाः औदारिकतैजसशरीराणि प्रतीत्य-आश्रित्य, पञ्चवर्णाः, द्विगन्धाः पञ्चरसाः, अष्टस्पर्शाः प्रज्ञप्ताः, कार्मणशरीरं प्रतीत्य-आश्रित्य, पञ्चवर्णाः, द्विगन्धाः, पञ्चरसाः, चतु:स्पर्शाः प्रज्ञप्ताः, जीवं प्रतीत्य-आश्रित्य तु अवर्णाः, अगन्धाः, अरसाः, अस्पर्शाः प्रज्ञप्ताः इति भावः। 'नवरं वाउकाइया ओरालियवेउवियतेयगाई पडुच्च पंचवन्ना, जाव अट्ठफासा पणत्ता, सेसं जहा नेरइयाणं' नवरम्-पृथिवीकायिकाधपेक्षया विशेषस्तु वायुकायिकाः औदारिकवैक्रियतैजसानि शरीराणि, प्रतीत्यतथा जीव की अपेक्षा से पृथिवीकायिक जीव नैरयिक के जैसा ही विना वर्ण के, विना गंध के, विना रस के और विना स्पर्श के कहे गये हैं। ' एवं जाव चउरिदिया ' इसी प्रकार से अप्कायिक, तेजस्कायिक, वनस्पतिकायिक एकेन्द्रिय तथा द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय औदारिक तैजस शरीर के पुद्गलों की अपेक्षा से पांच वर्णों वाले, दो गंधोंवाले, पांच रसोंवाले और आठ स्पर्शों वाले होते हैं, तथा कार्मणशरीर की अपेक्षा से पांच वर्णों वाले, दो गंधोंवाले, पांच रसोवाले और चार स्पों वाले होते हैं, एवं 'जीवं पडुच्च' जीव की अपेक्षा से विना वर्ण के, विना गंध के, विना रस के और विना स्पर्श के होते हैं। 'नवरं वाउकाइया ओरालियवेउम्वियतेयगाइं पडुच्च पंचवना, जाव अट्ठफासा, पण्णत्ता' सेसं जहा नेरइयाणं' पृथिवीकायिक की वक्तव्यता की अपेक्षा से घायुकायिक की वक्तव्यता में यदि अन्तर है तो અપેક્ષાએ વિચાર કરવામાં આવે, તે નારકની જેમ પૃથ્વીકાયિક છ વર્ણન रहित, २सहित अन १५३२डित डाय छे. " एवं जाव चउरिदिया" मेर પ્રમાણે અપકયિક, તેજસ્કાયિક, વનસ્પતિકાયિક તથા હીન્દ્રિય, ત્રીન્દ્રિય અને તરિય જીવો. દારિક અને તેજસ શરીરનાં મુદ્રની અપેક્ષાએ પાંચ વર્ણોવાળા, બે ગધેવાળા, પાંચ રસાવાળા અને આઠ સ્પર્શવાળા હોય છે, તથા કામણશરીરની અપેક્ષાએ તેઓ પાંચ વર્ણોવાળા, બે ગધેવાળા, પાંચ सोयाणा भने या२ २५वाय छे. “ जीवं पडुच्च" मन वनी આશાએ તેઓ વર્ણરહિત, ગંધરહિત, રસરહિત અને સ્પશરહિત હોય છે. " नवरं वाउकाइया ओरालिययेउवियतेयगाइं पडुच्च पंचवण्णा जाव अट्रफासा पण्णत्ता, सेसं जहा नेरइयाणं " पृथ्वीयन हिना ४थन ४२di पायं. કાયિકાના વર્યાદિના કથનમાં એવી વિશેષતા છે કે વાયુકાયિક્ર છ ઓદા શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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