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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ०५ सू०२ प्राणातिपातादिविरमणनिरूपणम् १८३ मज्ञप्ताः इति भावः । गौतमः पृच्छति-'पुढविकाइय पुच्छा' हे भदन्त ! पृथिवीकायिकाः कतिवर्णाः, कतिगन्धाः, कतिरसाः, कतिस्पर्शाः प्रज्ञप्ताः इति पृच्छा, भगवानाह-'गोयमा ! ओरालियतेयगाई पडुच्च पंचवन्ना जाव अट्ठफासा पण्णत्ता' हे गौतम ! पृथिवीकायिकाः औदारिकतजसानि शरीराणि प्रतीत्य-आश्रित्य औदारिकतैजसशरीरपुद्गलापेक्षयेत्यर्थः पञ्चवर्णाः यावत् द्विगन्धाः पञ्चरसाः, अष्ट स्पर्शाः प्रज्ञप्ताः 'कम्मगं पडुच्च जहा नेरइया' कार्मणशरीरं प्रतीत्य-आश्रित्य कार्मणशरीरपुद्गलापेक्षयेत्यर्थः पृथिवीकायिकाः यथा नैरयिकाः पश्चवर्णादि चतुःस्पर्शान्ताः प्रतिपादिता स्तथैव पञ्चवर्णाः, द्विगन्धाः, पश्चरसाः, चतुःस्पीः पतिपत्तव्याः, 'जीवं पडुच्च तहेव' पृथिवीकायिकाः जीवं प्रतीत्य आश्रित्य-जीवावाले होते हैं। तथा जीव की अपेक्षा से विना वर्ण के, विना गंध के, विना रस के और विना स्पर्श के होते हैं। ____ अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'पुढविकाइय पुच्छा' हे भदन्त ! पृथिवीकायिक कितने वर्णों वाले, कितने गंधोंवाले, कितने रसोंवाले, और कितने स्पर्शों वाले होते हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं'गोयमा' हे गौतम ! 'ओरालियतेयगाई पडुच्च पंचवन्ना, जाव अट्ठ. फासा, पण्णत्ता' औदारिक और तेजसशरीर के पुद्गलों की अपेक्षा से वे पांच वर्णों वाले, दो गंधोंवाले, पांच रसोंवाले, और आठ स्पर्शों वाले होते हैं । 'कम्मगं पडुच्च जहा नेरइया' कार्मण शरीर के पुद्गलों की अपेक्षा से पृथिवीकायिक नारकों के जैसा पांचवर्णों वाले, दो गंधोंवाले, पांच रसोंवाले और चार स्पर्शो वाले होते हैं, 'जीवं पडुच्च तहेव' પાંચ વદિવાળી અને ચાર સ્પર્શીવાળાં હોય છે જીવની અપેક્ષાએ વિચારવામાં આવે, તે વિના વર્ણના, વિના બંધના, વિના રસના અને સ્પર્શ વિનાના હોય છે. गौतम स्वाभाना प्रश्न-" पुढविकाइय पुच्छा" हे लान् ! पृथ्वी थिई। કેટલા વર્ણવાળા, કેટલા ગંધવાળા, કેટલા રસવાળા અને કેટલા સ્પર્શવાળા હોય છે? महावीर प्रसुन उत्त२-" गोयमा !” गौतम ! “ओरालियतेयगाई पडुच्च पंचवन्ना जाव अद्रफासा पण्णत्ते" मोहरि भने तेस शरीराना પુતની અપેક્ષાએ વિચાર કરવામાં આવે, તે પૃથ્વીકાયિકે પાંચ વર્ણોવાળા, २ पापा, पांय रसवाणा अन मा २५वा डाय छे. "कम्मगं पडुच्च जहा नेरइया " आम शरीरन मुद्दयोनी अपेक्षा विया२ ४२वामा આવે, તે પૃથ્વીકાયિકો નારકોની જેમ પાંચ વર્ણવાળા, બે ગધેવાળા, પાંચ सो मने या२ २५ सय छे. " जीवं पडुच्च तहेव" पनी શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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