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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १० उ० ३ सू० १ देवस्वरूपनिरूपणम् ७९ मुत्पाद्यापि व्यतिवजितुं प्रभुः समर्थों भवति, अथच अविमोह्यापि मोहमनुत्पाद्यापि व्यतित्रजितु प्रभुः समर्थों भवतीति भावः । गौतमः पृच्छति-' से णं भंते ! कि पुचि विमोहेत्ता, पच्छा वीइबइज्जा, पुन्धि वीइवइत्ता पच्छा विमोहेज्जा ?' हे भदन्त ! स खलु महर्द्धिको देवः किम् अल्पर्द्धिकं देवं पूर्व प्रथमं विमोह्य-मोहमुत्पाद्य, पश्चात् व्यतिव्रजेत् ? व्यतिक्रमेत् ? किं वा पूर्व प्रथमं व्यतिव्रज्य-व्यति क्रम्य पश्चात् विमोहयेत् ? मोहमुत्पादयेत् ? भगवानाह-' गोयमा! पुचि वा विमोहेत्ता, पच्छा वीइवएज्जा, पुछि वीइवइत्ता पच्छा विमोहेज्जा' हे गौतम! पूर्व वा विमोह्य, पश्चात् व्यतित्रजेत्-व्यतिक्रामेत् , पूर्व वा महर्द्धिक देव उस अल्पद्धिक देव को विमोहित करके भी निकल सकता है और नहीं विमोहित करके भी उसके बीचोंबीचसे होकर निकल सकता है। इस पर गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'से भंते! किं पुचि विमोहेत्ता, पच्छा वीइवइज्जा, पुद्धि वीइवइत्ता पच्छा विमोहेज्जा' हे भदन्त ! वह महद्धिक देव उस अल्पर्धिक देव को पहिले से ही मोह उत्पन्न कर देता है. फिर बादमें निकलता है, या पहिले वह उसके बीच में से होकर जाता है-बादमें उसे मोह उत्पन्न कर देता है ? इसके उत्तरमें प्रभु कहते हैं-'गोयमा! पुट्विा वा विमोहेत्ता, पच्छा वीइवएज्जा, पुचि वीइवएत्ता पच्छा विमोहेज्जा' वह महद्धिक देव अल्पऋद्धि वाले देव को पहिले भी विमोहित कर सकता है और बाद में जा सकता है और पहिले वह उसके बीचोंबीच से होकर
महावीर प्रभुना उत्त२-“गोयमा! विमोहेत्ता वि पभू , अविमोहेत्ता वि पभ" है गौतम! ते भी ऋद्धिवाणी व ते मावा वने વિહિત કરીને પણ તેની વચ્ચે થઈને નીકળી શકે છે અને તેને વિમોહિત કર્યા વિના પણ તેની વચ્ચે થઈને નીકળી શકે છે.
गौतम स्वाभी। प्रश्न-“से णं भवे ! किं पुब्वि' बिमोहेत्ता पच्छा वीइवइज्जा, पुव्वि विइवइत्ता पच्छा विमोहेज्जा?" उ सान् ? ते महदि દેવ શું તે અલ્પદ્ધિક દેવને પહેલાં વિમોહિત કરીને તેની વચ્ચે થઈને નીકળી જાય છે, કે પહેલાં તે તેની વચ્ચેથી નીકળી જાય છે અને ત્યાર બાદ તેને વિહિત કરી નાખે છે?
महावीर प्रभुना उत्तर- 'गोयमा!" गौतम! "पुव्वि वा, विमोहेत्ता. पच्छा वीइवएज्जा, पुव्वि वीइवएत्ता पच्छा विमोहेज्जा" ते पात भन्ने शते શકય બને છે. તે મહદ્ધિક દેવ પહેલાં તેને વિમોહિત કરીને ત્યાર બાદ તેની વચ્ચે થઈને ચાલ્યા જાય છે, એવું પણ બની શકે છે. અને અને પહેલાં તેની
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૯