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________________ ७८ भगवती सूत्रे एणं भंते! देवे अप्पडियस्स देवस्स मज्जमज्जेणं बीइवएज्जा ? ' हे भदन्त ! महर्द्धिकः खलु देवः अल्पद्धि कस्य देवस्य मध्यमध्येन मध्यभागेन व्यतित्रजेस् ? व्यतिक्रामेत् गच्छेत् किं ? भगवानाह - 'हंता, वीइव एज्जा ? हे गौतम! हन्त, सत्यम् महर्द्धिकः खलु देवः अपर्दिकस्य देवस्य मध्यमध्येन व्यतिव्रजेत् व्यतिक्रामेत् । गौतमः पृच्छति - ' से णं भंते! किं विमोहित्ता पभू, अविमोहित्ता पभू ? ' हे भदन्त ! स खलु महर्द्धिको देवः किम् अल्पर्द्धिक देव विमोह्य - मिहिकाद्यन्धकारकरणेन मोहमुत्पाद्य, व्यतित्रजितुं प्रभुः समर्थः ? किंवा अविमोध मोहमनुत्पाद्य व्यतिजितुं प्रभुः समर्थो भवति ? भगवानाह - - गोयमा ! विमोहेत्ता वि पभू, अविमोहता विपभू' हे गौतम! महर्द्धिको देवः अल्पर्द्धिकं देवं विमोद्यापि मोहनहीं है कि पहिले निकल जावे और बाद में वह उसे मोहित करे । अब गौतम स्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं 'महिडिए णं भंते! देवे अडियस देवरस मज्झ मज्झेण वीइवएज्जा' हे भदन्त ! जो देव महर्द्धिक होता है वह अल्पद्धिक देव के बीचोंबीच से होकर निकल सकता हैं क्यों ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'हंता, वीइवएज्जा' हां, गौतम निकल सकता है। अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं- 'से ण भंते! किं विमोहेत्ता पभू, अविमोहेत्ता पभू' हे भदन्त ! वह महद्विक देव जो अल्पद्धिक देव के बीचोंबीच से होकर निकल सकता है सो क्या वह उसे पहिले महिकादि के अंधकार करने से विमोहित कर देता है तब निकलता है, या पहिले उसके बीच में से होकर निकल जाता है बाद में वह उसे विमोहित कर देता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं'गोमा ! विमोहेत्ता वि पभू, अविमोहेसा वि पभू' हे गौतम! वह નીકળી જાય અને ત્યાર બાદ તેને વિમાહિત કરે, એવું બનતું નથી. કહેવાનુ તાપય એ છે કે પહેલાં તેને વિમાહિત કરવામાં આવે છે અને ત્યાર બાદ જ તેની વચ્ચે થઇને નીકળી શકે છે. गौतम स्वामीनी प्रश्न - " महढिए णं भंते ! देवे अप्पढियस्स देवरस मज्झ मझेणं वीरवएज्जा" हे भगवन् ! अधि ऋद्धिवाणी हे शुद्ध महय ऋद्धिवाना દેવની વચ્ચે થઈને નીકળી શકે છે ખરા ? भडावीर अलुन। उत्तर- " हंता, वीइवएज्जा " डा, गौतम ! नीजी रा छे. गौतम स्वामीनी प्रश्न - " से णं भंते! कि विमोहित्ता पभू, अविमोहेत्ता પમૂ ? ” હે ભગવન્! શુ' તે મહદ્ધિક દેવ તે અપદ્ધિક દેવને વિમેાહિત કરીને (મહિકાર્ત્તિને અધકાર કરીને તેના દ્વારા તેને વિમાહિત કરીને) તેની વચ્ચે થઈ ને નીકળી શકે છે, કે તેને વિમાહિત કર્યા વિના તેની વચ્ચે થઇને નીકળી શકે છે ? શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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