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प्रमेयचन्द्रिका टाका श० १० उ० ३ सू० १ देवस्वरूपनिरूपणम्
पृच्छति - ' से भंते! किं पुत्र विमोहेत्ता, पच्छा विश्वएज्जा पुत्र' बीइवएत्ता पच्छा विमोहेज्जा ? ' हे भदन्त । स समर्द्धिकः किं पूर्व-प्रथमं विमोह्य मोहमुस्पाद्य, पश्चात् तदनन्तरं व्यतिव्रजेत् ? व्यतिक्रामेत् ? किंवा पूर्व प्रथमं व्यतिव्रज्य - व्यतिक्रम्य, पश्चात् तदनन्तरं विमोहयेत् ?' भगवानाह - ' गोयमा ! पुत्रि विमो
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ता पच्छा वीइत्र एज्जा, णो पुत्रि वीइवइत्ता पच्छा विमोहेज्जा ' हे गौतम! पूर्व प्रथमं विमोह्य महिकाद्यन्धकारकरणेन मोहमुत्पाद्य, पश्चात् व्यतिव्रजेत् व्यतिक्रामेत्, नो पूर्वं व्यतिव्रज्य व्यतिक्रम्य, पश्चाद् विमोहयेत् । गौतमः पृच्छति - ' महिड्डिनेमें समर्थ नहीं हो सकता है वह तो उसे मोह उत्पन्न करके ही उसके arate होकर निकल सकने में समर्थ होता है।
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अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-' से भते ! किं पुव्वि विमोहित्ता पच्छा बीइवएज्जा, पुषि बीहवएत्ता पच्छा विमो हेजा' हे भदन्त ! पहिला समर्द्धिक देव दूसरे समद्धिक देवst विमोहित करके निकलने में समर्थ होता है, सो इस पर हमें यह शंका होती है कि क्या वह उसे पहिले मोहित कर देता है-तब उसके बीचोंबीच से निकलता है या पहिले निकल जाता है, बादमें उसे मोहित करता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'गोयमा' हे गौतम! 'पुवि विमोहेत्ता पच्छा बीइवएजा णो पुवि वीइवहत्ता पच्छा विमोहेजा' वह समर्द्धिक देव दूसरे समद्धिक देव को पहिले से ही विमोहित करके. अर्थात् महिकादि के अंधकार करने से मोह उत्पन्न कराके पश्चात् उसके बीचोंबीच से होकर निकल जाता है। ऐसा
भडावीर अलुना उत्तर- " गोयमा !” हे गौतम! " विमोहत्ता पभू, णो अविमोहेत्ता पभू " ४ समद्धि देव जील भद्धि देवमां भोई उत्पन्न કર્યા વિના તેની વચ્ચે થઈને જવાને સમર્થ હાતા નથી, પરંતુ તેને વિમે હિત કરીને જ તેની વચ્ચે થઇને નીકળવાને સમર્થ હોય છે.
गौतम स्वामीना प्रश्न - " से भंते ! किं पुव्विं विमेा हित्ता पच्छा विश्वएज्जा, पुव्विं वीवएत्ता पच्छा विमोहेज्जा १ " હું ભગવન્ ! જે પહેલા સમદ્ધિ ધ્રુવ ખીજા સમધ્ધિક ધ્રુવને વિમાહિત કરીને તેની વચ્ચેથી નીકળવાને સમર્થ બને છે, તે શુ તે પહેલાં તેને વિમાહિત કરી નાખીને ત્યાર બાદ તેની વચ્ચે થઈને નીકળી જાય છે, કે પહેલાં તેની વચ્ચે થઈને નીકળી જાય છેઅનેત્યાર બાદ તેને વિમાહિત કરે છે?
भडावीर अलुनो उत्तर-" गोयमा ! " हे गौतम! " पुवि त्रिमोहता पच्छा बीइवएज्जा, णो पुव्वि वीइवइत्ता पच्छा विमोहेज्जा " ते समद्धि हेव जील સમદ્ધિક દેવને માહિત કરીને એટલે કે ધુમસના અંધકાર દ્વારા પહેલાં તેને વિમાહિત કરે છે અને ત્યારબાદ તેની વચ્ચે થઈને નીકળી જાય છે. પહેલાં
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯