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________________ ६३४ भगवती भक्तानि अनशनया छेत्स्यति, छेदिता आलोइयपडिक्कते, समाहिपत्ते, कालमासे कालं किच्चा, सोहम्मे कप्पे अरुणाभे विमाणे देवताए उववजिनहिति' छिस्वा, आलोचितप्रतिक्रान्तः-कृतलोचनप्रतिक्रमणः, समाधिमाप्तः-समाधिसम्पन्न:, कालमासे कालं कृत्वा, सौधर्मकल्पे, अरुणाभे विमाने देवतया उपपत्स्यते, 'तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता' तत्र खल्ल सौधर्म कल्पे, अस्त्ये केनां देवानां चत्वारि पल्योपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता, 'तत्थण इसि भहपुत्तस्स वि देवस्स चत्तारि पलिओकमाईठिई भविस्सइ' तत्र खलु सौधर्म कल्पे ऋषिभद्रपुत्रस्यापि देवस्थ चत्वारि पल्योपमानि स्थितिः भविष्यति। 'से गं भंते ! इसिभद्दपुत्ते देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएण, भवक्खएणं, ठिइक्खभत्ताई अणसणाए छेदेहिइ ' कायकषाव को कृश करके फिर वह साठ भक्तों का अनशन द्वारा छेदन करेगा 'छेदित्ता आलोइयपडिकते समाहियत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे अरुणाभे विमाणे देवत्ताए उववन्जिहिति' छेदन करके आलोचना प्रतिक्रमण जिसने किया है ऐसा वह ऋषिभद्रपुत्र समाधि को प्राप्त कर कालमास में काल करके सौधर्म कल्प में अरुमाभविमान में देवरूप से उत्पन्न होगा 'तत्थणं अत्थे गइयाणं देवाण चत्तारि पलिओवमाईठिई पण्णत्ता' वहां पर कितनेक देवों की चार पल्योपम की स्थिति कही गई है-सो 'तस्थ ण ईसिभद्दपुत्तस्स वि देवस्ल चत्तारि पलिओवमाई ठिई भविस्सा' ऋषिभद्रपुत्र देव की भी वहां चार पल्योपम की स्थिति होगी 'से ण भंते ! ईसिमद्दपुत्ते देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएण, भवक्खएण, पायाने पृ४२२१. “ झूसित्ता सर्द्धि भत्ताइ अणसणाए छेदेहिइ" आय भने કષાયને કૃશ કરીને અને અનશન દ્વારા ૬૦ ભકતેને એક માસ પર્યન્તના मा२) परित्या शक, “छेदिचा आलोइयपडिकते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे अरुणाभे विमाणे देवत्ताए उववज्जिहिति ' ५५४ानी આલોચના અને પ્રતિક્રમણ કરીને, સમાધિ ભાવને પ્રાપ્ત કરીને, કાળને અવસર આવેથી કાળધર્મ પામીને સૌધર્મક૯૫ના અરુણાભ નામના વિમાનમાં દેવની पर्याय उत्पन्न थशे. “ तत्थणं अत्थेगइयाणं देवाण चत्तारि पलिओवमाइं कि पण्णत्ता" त्या तुवानी या पक्ष्या५मनी स्थिति ही छ. “ तत्थ णं ईसिमपुत्तस्स वि देवस्स चत्तारि पलिओवमाइं टिई भविस्सइ" मा ऋषिभद्र પુત્ર પણ ત્યાં ચાર પલ્ય પમની સ્થિતિવાળા દેવરૂપે ઉત્પન્ન થશે. गौतम स्वाभाना प्रश्न-" से णं भंते ! ईसिमपुत्ते देवे ताओ देवलोगाओ आउखएणं, भवक्खएणं, ठिइक्खएणं जाव कहिं उववज्जिहिइ ?" भगवन् ! શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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