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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ११ उ०१२ १.३ ऋषिभद्र पुत्रस्य सिद्धिनिरूपणम् ६३३ भगवानाह-'गोयमा ! णो इणढे समहे' हे गौतम ! नायमर्थः समर्थः-नैतत् संभपति, ऋषिभद्रपुत्रः प्रव्रज्यां ग्रहीतुं समर्थों नास्ति । तत्र कारणमाह-गोयमा! इसिभद्दपुत्ते समणोवासए, बहूहिं सीलव्यय-गुणवय-वेरमण-पञ्चक्खाणपोसहोववासेहि, अहापरिग्गहिएहिं तवोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणे' हे गौतम ! ऋषिभद्रपुत्रः श्रमणोपासकः, बहुभिः-अनेकैः, शीलवत-गुणवत-विरमण-प्रत्याख्यानपौषधोपवासैः, यथापरिगृहीतैः-नियमानुसार स्वीकृतैः, तपः कर्मभिः आत्मानं भावयन् 'बहूइं वासाई समणोवासगपरियागं पाउणिहिति', बहूनि वर्षाणि श्रमणोपासकपर्यायं पालयिष्यति 'पाउणित्ता, मासियाए संलेहणाए अनाणं झूसेहिइ' पालयित्वा मासिक्या, संलेखनया, आत्मानं जूषयिष्यति शरीरकषायं च कुशी करीष्यति, इत्यर्थः, 'झूसित्ता, सढि भत्ताई अणसणाए छेदेहि३' जूपयित्वा, पष्टिं लिये समर्थ है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु ने गौतम से कहा-'गोयमा! णो इणहे समढे' हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है-अर्थात् ऐसा बात संभवित नहीं है क्यों कि वह ऋषिभद्रपुत्र प्रव्रज्या ग्रहण करने के लिये समर्थ नहीं होगा, परन्तु 'गोयमा' हे गौतम ! ' इसिभहपुत्ते समणोवासए बहूहिँ सीलव्ययगुणवयवेरमणपच्चक्खाण-पोसहोय. कासेहिं अहापरिग्गहिएहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावमाणे' यह ऋषिभद्रपुत्र अनेक शीलवत, गुणव्रत, विरमणव्रत, प्रत्याख्यान, पोषधोपवास इनसे तथा नियमानुसार स्वीकृत कर्मों से आत्मा को भावित करता हुआ 'बहूई वासाइं समणोवासगपरियागं पाणिहिति' अनेक वर्षों तक श्रमणोपासक पर्याय को पालन करेगा 'पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं सेहिइ' पालन करके फिर वह एकमास की संलेखना से शरीर को और कषाय का कृश करेगा 'झूसित्ता सहि भडावा२ प्रभुने। उत्तर-“गोयमा ! णो इणद्वे सम" 3 गौतम ! मे વાત સંભવિત નથી, કારણ કે તે વિભદ્રપુત્ર પ્રવજ્યા ગ્રહણ કરવાને સમર્થ नथी. ५२न्। “गोयमा ! " 3 गौतम ! " इसिमहपुर समणोवासए बहूहिं सीलव्वयगुणवयवेरमणपच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं अहाप गहिपहिं तवोक. म्मे हिं अपाण भावेमाणे " 24t *पिलद्र पुत्र भने शासनत, गुनत, विरमણુવ્રત, પ્રત્યાખ્યાન તથા નિયમાનુસાર સ્વીકૃત તપ કર્મોથી આત્માને ભાવિત २ते। “ बहूई वासाई समणोवासग-परियाग पाउणिहिंति " भने वर्षा सुधा श्रमपास पर्यायर्नु पालन शे. " पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताण झूसेहिइ” त्या२मा त भासन सथा। शन शरीर भने भ० ८० શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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