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प्रमैयचन्द्रिका टीका श०११ २०१२ सू०३ ऋषिभद्रपुत्रस्य सिद्धिनिरूपणम् ६३५ एणं जाव कहिं उववज्जिहिइ ?' हे भदन्त ! स खलु ऋषिभद्रपुत्रो देवस्तस्मात् देवलोकात् आयुः क्षयेण, भवक्षयेग, स्थितिक्षयेण, यावत्-अनन्तरम् चयं च्युत्वा कुत्र गमिष्यति कुत्र उत्पत्स्यते ? कुत्र उत्पत्ति लप्स्यते ? भगवानाह-'गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ जाच अंतं काहेइ' हे गौतम ! स ऋषिभद्रपुत्रो देवस्तस्माद् देवलोकात् च्युत्वा महाविदेहे वर्षे सेत्स्यति, यावत्-भोत्स्यते, मोक्ष्यते परिनिर्वास्यति सर्वदुःखानामन् करिष्यति । अन्ते गौतमो भगवद्वाक्यं सत्यापयमाह-'सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति भगवं गोयमे जाव अप्पाण भावेमाणे विहरइ' हे भदन्त ! तदेवं-भवदुक्तं सर्व सत्यमेव, हे भदन्त ! तदेवं भवदुक्तं सर्व सत्यमेव, ठिइक्वएणं जाव काहि उववन्जिहिह' अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-हे भदन्त ! ऋषिभद्रपुत्र देव उस देवलोक से आयु के क्षय से, भवके क्षय से और स्थिति के क्षय से देवभव संबंधी शरीर का परित्याग कर कहां पर जायगा, कहां पर उत्पन्न होगा इसके उत्तर में प्रभु ने कहा'गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ, जाव अंतं काहेइ' हे गौतम ! यह ऋषिभद्रपुत्र देव उस देवलोक से चलकर महाविदेहक्षेत्र में सिद्धिप्राप्त करेगा यावत्-अपने केवलज्ञान से समस्त वस्तुओं का ज्ञाता होगा, समस्त कर्मों से सर्वथा रहित होगा और समस्त दुःखों का अन्त करेगा अन्त में गौतम भगवान् के वचनों में सत्यता ख्यापन करने के लिये कहते हैं-'सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति भगवं गोयमे जाव अप्पाणं भावेमाणे विहरह' हे भदन्त ! आपके द्वारा प्रतिपादित हुआ यह सब ઋષિભદ્રપુત્રના તે દેવલેક સંબંધી આયુનો ક્ષય થતાં, ભવને ક્ષય થતાં, સ્થિતિને ક્ષયથતાં, દેવભવ સંબંધી શરીરનો પરિત્યાગ કરીને ક્યાં જશે, કયાં ઉત્પન્ન થશે?
महावीर प्रभुने। उत्त२-" गोयमा ! महाविदेहे वारे सिज्झिहिइ जाव अंत काहेइ” हे गौतम ! ऋषिभद्र पुत्री माथी म्यवान महावि ક્ષેત્રમાં મનુષ્ય રૂપે ઉત્પન્ન થશે, ત્યાં કેવળજ્ઞાનથી તે સમસ્ત વરતુઓને જોઈ શકશે, સમસ્ત કર્મોથી સર્વથા રહિત થશે, અને સમસ્ત દુઃખને અત કરી નાખશે. એટલે કે તેઓ સિદ્ધ, બુદ્ધ, મુક્ત, પરિનિર્વાત થશે અને સમસ્ત શારીરિક અને માનસિક દુઃખોથી રહિત એવા નિર્વાણ પદને પામશે સૂત્રને અને ગૌતમ સ્વામી મહાવીર પ્રભુનાં વચનને પ્રમાણભૂત ગણીને તેમના પ્રત્યે पोतानी अपार श्रद्धा ०५४ ४२i डे छ-" सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति भगवं गोयमे जाव अप्पाणं भावमाणे विहग्इ” उ भगवन्! मा विषयनु
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૯