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________________ ५७० भगवतीसूत्रे अथ च जघन्यको द्वादशमुहूत्र्तों दिवसो भवति ? भगवानाह-' सुदंसणा! आसाढपुन्निमाए उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहन्निया दुवालसमुहुत्ता राई भवई' हे सुदर्शन ! आषाढपूर्णिमायाम् उत्कृष्टेन अष्टादशमुहूत्तों दिवसो भवति, अथ च जघन्येन द्वादशमुहूर्ता रात्रि भवति, अत्र आषाढपौर्णमास्यामिति कथन पञ्चसंवत्सरिकयुगस्यान्तिमवर्षापेक्षया विज्ञेयम् , यतस्तत्रैव आषाढपौर्णमास्यामष्टादशमुहूतौ दिवसो भवति, साईचतुष्टयमुहूर्त्ता च तत्पौरुषी भवति, वर्षान्तरे तु यत्र दिवसे कर्कसंक्रान्ति मवति तत्रैवासौ संभवति इति बोध्यम् , तथैव'पोसस्स पुन्निमाए णं उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राई मवइ, जहन्नए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवई' पौषस्य पूर्णिमायां खलु उत्कृष्टिका-उत्कर्षेण अष्टादशमुहूर्ती रात्रि होती है, और कब छोटा दिन जो कि १२ मुहूर्त का होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'सुदंसणा ! आसाढपुन्निमाए उक्कोसए अट्ठारसमुहूत्ते दिवसे भवह, जहन्निया दुवालसमुष्टुत्ता राई भवह ' हे सुदर्शन ! आषाढमास की पूर्णिमा में दिन १८ मुहूर्त का होता है और रात्रि १२ मुहूर्त की होती है। 'आषाढमास की पूर्णिमा में ऐसा जो कथन किया है वह पांच वर्ष के युग के अन्तिम वर्ष की अपेक्षा से कहा गया है क्यों कि उसी आषाढी पूर्णिमा में १८ मुहूर्त का दिन होता है। और उस समय ४॥ मुहूर्त की पौरुषी होती है। तथा वर्षान्तर में जिन दिन कर्क संक्रान्ति होती है उसी दिन यह पौरुषी होती है ऐसा जानना चाहिये ! इसी प्रकार 'पोसस्स पुन्निमाए ण उक्कोसिया अट्ठा. रस मुहत्ता राई भयह जहन्निया दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवह' पोष मास की पूर्णिमा में उत्कृष्ट रूप से १८ मुहूर्त की रात्रि होती है और महावीर प्रभुने। उत्त२-"सुदंसणा ! आसाढपुन्निमाए उक्कोसए अद्वारसमुहुत्ते विसे भवइ, जहन्निया दुवालसमुहुत्ता गई भवइ" सुशन ! अषाढ भासनी પૂર્ણિમાએ વધારેમાં વધારે ૧૮ મુહૂર્તને દિવસ અને ઓછામાં ઓછા ૧૨ મહની રાત્રિ થાય છે. “અષાઢ માસની પૂર્ણિમાએ ”એવું જે કથન કરવામાં આવ્યું છે તે પાંચ વર્ષના યુગના અન્તિમ વર્ષની અપેક્ષાએ કરવામાં આવ્યું છે, કારણ કે એજ અષાઢી પૂર્ણિમાએ ૧૮ મુહૂર્તને દિવસ હોય છે. ત્યારે ઝા મહને એક પહોર થાય છે. તથા વર્ષમાં જ્યારે કર્કસંક્રાન્તિ થાય છે, स्यारे २१ मा भुतन ५७।२ थाय छे मेम समबु. मे प्रभारी " पोसस्स पुन्निमाए ण उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राई भवइ, जहन्निया दुधालसमुहुत्ते दिवसे भवह" पाप भासनी पूर्णिमामे inwi sinी १८ भुइतनी रात्रि माने શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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