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________________ ४६८ भगवतीसूत्रे सार्द्ध चतुष्टयमुहूर्तरूपा दिवसस्य वा, रात्रे वा पौरुषी भवति ?' 'कया वा जहन्निया तिमुहुत्ता दिवसस्स वा, राईए वा पोरिसी भवइ ?' कदा वा जघन्यिकाजघन्येन त्रिमुहूर्ता-मुहूर्तत्रयरूपा दिवसस्य वा, रात्रेवी पौरुषी भवति ? भगवानाह-'मुदसणा ! जयाणं उक्कोसए अट्ठारसमुहूत्ते दिवसे भवइ-जहन्निया दुवालसमुहुत्ता राई भवइ, तयाणं उक्कोसिया अट्ठपंचममुहुत्ता दिवसस्स पोरिसी भवइ, जहन्निया तिमुत्ता राईए पोरिसी भवइ' हे सुदर्शन ! यदा खलु उत्कृष्टक:-उत्कर्षेण अष्टादशमुहूत्ततॊ दिवसो भवति, अथ च जघन्यिका-जघन्येन द्वादशमुहूर्त्ता रात्रि भवति, तदा खलु उत्कृष्टिका-उत्कर्षेण अर्द्धपश्चममुहूर्ता-सार्द्ध चतुष्टयमुहूर्तरूपा दिवसस्य पौरुषी भवति, अथ च जघन्येन त्रिमुहूर्ता-मुहूर्तत्रयात्मिका रात्रे पौरुषी भवति । 'जयाणं उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्तिा राई भवइ, जहन्निए दुवालसमुहुत्ते जो यह पौरुषी दिन और रात की ४॥ मुहूर्त की होती है सो कब होती है, 'कया वा जहन्निया तिमुहुत्ता दिवसस्स वा राईए वा पोरिसी भवई' तथा तीन मुहूर्त की जो दिन की और रात्रि की पौरुषी होती है वह कष होती है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'सुदंसणा! जया ण उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहनिया दुवालसमुहुत्ता राई भवइ तया ण उक्कोसिया अद्धपंचममुहुत्ता दिवसस्स पोरिसी भवइ, जहनिया तिमुहुत्ता राईए पोरिसी भवइ' हे सुदर्शन ! जिस समय उत्कृष्ट से दिन १८ मुहूर्त का होता है और रात्रि कम से कम १२ मुहूर्त की होती है, तब दिनकी पौरुषी उत्कृष्टरूप से ४॥ मुहूर्त की हो जाती है और रात्रि की पौरुषी कम से कम तीन मुहूर्त की हो जाती है । तथा-' जया ण उक्कोहिया अट्ठारसमुत्तिया राई भवइ, जहनिए दुवालसमुहुत्ते दिवसे मधिभा अधि४ ४॥ मुस्त'नो यारे थाय छ ? " कया वा जहन्निया तिमुहुत्ता दिवसस्त वा राईए वो पोरिसी भवइ ? " तथा हिवस मने रात्रिन પહોર ટુંકામાં ટુંકે ૩ મુહૂર્તને કયારે થાય છે? महावीर प्रभुनो उत्तर-“ सुदंसणा ! जयाण' उक्कोसए अद्वारसमुहत्ते दिवसे भवइ, जहन्निया दुवालसमुहुत्ता राई भवइ तयाण उक्कोसिया अद्धपंचममुहत्ता दिवसस्म पोरिसी भवइ, जहन्निया तिमुहुत्ता राईए पोरिसी भव" હે ગૌતમ! જયારે લાંબામાં લાંબો ૧૮ મુહૂર્તને દિવસ અને ટુંકામાં ટુંકી ૧૨ મુહૂર્તની રાત્રિ થાય છે, ત્યારે દિવસ પહેર અધિકસી અધિક કા મુહુર્તન થાય છે અને રાત્રિને પહોર ઓછામાં ઓછા ૩ ત્રણ મુહર્તાને થાય छ. तथा " जयाण' उक्कोसिया अद्वारसमुहुत्तिया राई भवइ, जहन्निया दुवालस શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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