SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 470
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवतीसूत्रे श्रेष्ठी त्रिविधया-त्रिमकारिकया मनोवचःकायिक्या पर्युपासनया भगवन्तं पर्युपास्ते । 'तएणं समणे भगवं महावीरे सुदंसणस्स सेट्ठीस्स तीसे य महइ महालयाए नाव आराहए भवइ' ततः खलु श्रमणो भगवान महावीरः सुदर्शनस्य श्रेष्ठिनः, तस्यां च महातिमहालयायां यावत्-परिषदि धर्मकथां कथयति, कियस्पर्यन्तां कथयतीत्याह-'जाव आराहए भवई' यावत्-एतस्य धर्मस्य शिक्षायामुपस्थितः श्रमणोपासको वा श्रमणोपासिका वा विहरन् आज्ञायाः आराधको भवति, 'तए णं से सुदंसणे सेट्ठी समणम्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा, निसम्म हट्टतुट्टो उठाए उठेइ' ततः खलु स सुदर्शनः श्रेष्ठी श्रमणस्य भगवतो सुदर्शन सेठ ने मन वचन काय संबंधी त्रिविध पर्युपासना से भगवान् की पर्युपासना की 'तएणं समणे भगवं महावीरे सुदंसणस्स सेहिस्स तीसे य महइमहालयाए जाव आराहए भवइ' इसके बाद श्रमण भगवान महावीर ने उस सुदर्शन सेठ को उस विशालजनसमुदायरूप सभा में धर्मोपदेश दिया. यावत् वे सुदर्शन सेठ आराधक हो गयेसच्चे श्रावक बन गये. 'जाव आराहए भवइ ' इस सूत्राश से सूत्रकार ने यह प्रकट किया है कि यहां तक प्रभु ने उन्हे उपदेश दिया उनके उपदेश में उपस्थित प्राणी-श्रमणोपासक या श्रमणो-पासिका होकर उनकी आज्ञा का आराधक हो जाता है सुदर्शन सेठ भी इसी प्रकार से प्रभु की आज्ञा के आराधक बने 'तएण से सुदंसणे सेट्ठी समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हतुट्टो उठाए उद्देई' महावीरनी १ २-1 फ्युपासना ४२१. “तएण' समणे भगव' महावीरे सुदंसणस्स सेविस्स तीसे य महइमहाल याए जाव आराहए भव" त्या२ मा महावीर प्रभुणे ते सुशान शेने तथा ते અતિ વિશાળ જનસમુદાય રૂપ પ્રખદાને ધર્મોપદેશ સંભળાવ્યો. (યાવ) તે साशन : भा२।५४ (साय श्रा१४) मनी गया. " जाव आराहए भव" આ સૂત્રાંશ દ્વારા સૂત્રકારે એ વાત પ્રકટ કરી છે કે મહાવીર પ્રભુનો ઉપદેશ સાંભળનાર છે, શ્રમણોપાસક કે શ્રમણે પાસિકા બનીને પ્રભુની આજ્ઞાના આરાધક બની જતાં હતાં, એજ પ્રમાણે સુદર્શન શેઠ પણ તેમની આજ્ઞાના આરાધક બની ગયા. ____ “तएणणे से सुदंसणे सेट्ठी समणस्स भगवओ महावीरस्व अंतिए धम्म' सोच्या निसम्म हट्टतुट्ठो उट्ठाए रहेइ" त्या२ मा श्रम मन मडावीरनी શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy