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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ११ उ०११ सू० १ कालद्रव्यनिरूपणम् ४५७ महावीरस्य अन्तिके-समीपे. धर्म श्रुत्वा, निशम्य हृदि अवधार्य हृष्टतुष्टाः सन् उत्थया-उत्थानेन उत्तिष्ठते, 'उठाए उठेत्ता समण भगवं महावीर तिक्खुत्तो जाव नमंसित्ता एवं वयासी'-उत्थया उत्थाय श्रमण भगवन्तं महावीर त्रि कृतः-चारत्रयं यावत्-आदक्षिणप्रदक्षिण करोति, कृत्वा वन्दते, नमस्यति, वन्दित्वा, नमस्यिस्वा एवं-वक्ष्यमाणप्रकारेण अवादीत्-'कइविहेण भंते ! काले पण्णत्ते?' हे भदन्त ! कतिविधः खलु कालः प्रज्ञप्तः ? भगवानाह-सुदंसणा! चउबिहे काले पण्णत्ते' हे सुदर्शन ! वतुर्विधः खलु कालः प्रज्ञप्तः, 'तंजहा-‘पमाणकाले १, अहाउनिवत्तिकाले२, मरणकाले ३, अद्धाकाले'४ तद्यथा-ममाणकाल: १, यथायु निनिकालः २, मरणकालः ३, अद्धाकालश्च ४, तत्र प्रमीयते-परिच्छि धते येन इसके बाद वे सुदर्शन सेठ श्रमण भगवान महावीर के पास श्रुतचारित्ररूप धर्म का श्रवण कर और उसे अच्छी रीती से अपने हृदय में धारण कर आनन्द युक्त बन गये। बडे ही अधिक संतुष्ट हुए और ऊठे 'उठाए उद्वेत्ता समण भगवं महावीरं तिक्खुत्तो जाव नमंसित्ता एवं वयासी' और ऊठकर वे श्रमण भगवान् महावीर के पास आये वहां आकर उन्हों ने उनको तीन बार बन्दना की नमस्कार किया वन्दना नमस्कार कर फिर उन्हों ने प्रभु से ऐसा प्रश्न किया-'कविहे ण भंते ! काले पण्णत्ते' हे भदन्त ! काल कितने प्रकार के कहे गये हैं ? तब भगवान् ने उनसे कहा-'सुदंसणा चउब्धिहे काले पण्णत्ते' हे सुदर्शन ! काल चार प्रकार का कहा गया है ! ' तंजहा' जो इस प्रकार से है'पमाणकाले, अहाउनिव्वत्तिकाले, मरणकाले, अद्धाकाले' प्रमाणकाल१, यथायुनिर्वृत्तिकाल २, मरणकाल, ३, और अद्धाकाल ४, जिस काल से સમીપે શ્રુતચારિત્ર રૂપ ધર્મનું શ્રવણ કરીને અને તેને સારી રીતે હૃદયમાં ધારણ કરીને સુદર્શન શેઠ અત્યંત હર્ષ અને સંતોષ પામ્યા, અને તેઓ चातानी जत्थान शतिथी ला था. " उठाए उठूता समण भगव महावीर' तिक्खुत्तो जाव नमंसित्ता एव वयासी " NAL तसा महावीर प्रभु પાસે ગયા. ત્યાં જઈને તેમણે તેમને ત્રણ વાર વંદણા કરી અને નમસ્કાર કર્યા. વંદણું નમસ્કાર કરીને તેમણે મહાવીર પ્રભુને એ પ્રશ્ન પૂછે કે " कइविहे ण भंते ! काले पण्णत्ते ? "भगवन् ! डेटा प्रान। यो छे' महावीर प्रभुना उत्त२-- 'सुदसणा चउव्विहे काले पण्णत्त-तंजहा' 3 સુદર્શન! કાળના નીચે પ્રમાણે ચાર પ્રકાર કહ્યાં છે. "पमाणकाले, अहाउनिव्वत्तिकाले, मरणकाले अद्धाकाले" (१) प्रमाणु, (२) यथायनि यत्तिsta, (3) भ२९४१॥ मन (४) मद्धा. या वर्षशत શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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