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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ११० १० सू० १ लोकस्वरूपनिरूपणम् 5 ध्रुवः शाश्वतः, अव्ययः, नित्यथ वर्तते इति भावः, 'भावओ णं' अहेलोगखेत्तलोए अनंता बन्नपज्जा जहा खंदर, जान अनंता अगुरु य लहुयपज्जवा, एवं जाव लोष' भावः खलु अधोलोक क्षेत्रलोके अनन्ता वर्णपर्यवाः वर्णपर्यायाः सन्ति, एकगुणकालिकादीनाम् अनन्तगुणकालाधन सान्तानां पुद्गलानां तत्र सद्भावात्, यथा स्कन्द के द्वितीयशतके प्रथम देश के प्रतिपादितम् तथैव अत्रापि प्रतिपत्तव्यम् - यावत् अनन्ताः अगुरुलघुरूपाः सन्ति एवं पूर्वोक्तरीत्या यावत् तिर्यग्लोक क्षेत्रलोके, ऊर्ध्वलोक क्षेत्रलोके, लोके च अनन्ता वर्णादिपर्यवाः सन्तीति भावः । ' भावओण अलोए नेत्रस्थि वन्नपज्ञवा जाव नेवत्थि अगुरुयलहुययज्जवा, एगे अजीवदव्वदेसे जाव अनंतभागणे' भारतः खल अलोके नैव सन्ति वर्णपर्यंवाः यावत- नैव 'भावओ णं अहेलोगखेत्तलोए अनंता वन्नपज्जचा जहा खंदए, जाव अनंता अगुरुय लहुयपजबा, एवं जाब लोए' वर्ण की अपेक्षा से अधोलोकरूप क्षेत्रलोक में अनन्त वर्णपर्यायें हैं क्यों कि एक गुणकृष्णवर्गवाले, दो गुणकृष्णवर्णवाले आदि अनन्तगुणकृष्णवर्णवाले पुलों का वहां पर सद्भाब है। जैसा स्कन्दक नामके, द्वितीयशतक के प्रथमोदेशक में कहा गया है वैसा ही यहां पर यावत् - अनन्तरसादिपर्याये हैं, अनन्तगुरुकलघुकपर्यायें हैं, इसी प्रकार से यावत् तिर्यग्लोक क्षेत्रलोक मैं और लोक क्षेत्रलोक में एवं लोक में अनन्त वर्णादि पर्यायें हैं । 'भावओ णं' अलोए नेवस्थि यण्णपजवा जाव नेवस्थि अगुरु य लहु य पज्जवा, एगे अजीवदव्वदेसे, जाव अनंत भागूणे' भाव की अपेक्षा अलोक में वर्ण नहीं हैं, यावत् रसादि पर्यायें नहीं हैं, और अगुरुलघुकप ४१९ " भावओ ण अहेलोगखेत्तलोए अनंता वनपज्जवा जहा बंदए, जाव अणता अगुरु य हुयपज्जवा, एवं जाव लोए " वर्षानी अपेक्षाये धोखे રૂપ ક્ષેત્રàાકમાં અનંત વણુ પર્યાય છે, કારણ કે એક ગુણિત કૃષ્ણ ણુ વાળાં, એ ગુણિત કૃષ્ણવર્ણ વાળાં આદિ અનત ગુણિત કૃષ્ણવ વાળાં પુદ્ગલેાના ત્યા સદ્ભાવ છે. ખીજા શતકના સ્કન્દક નામના પહેલા ઉદ્દેશામાં જેવું કથન કરવામાં આવ્યું છે. એવુ' જ કહ્ન અહી પણ ગ્રહણ થવુ જોઈએ. આ કથન “અનત રસાદિ પર્યાયેા છે, અનંત અનુરુક લઘુક પર્યાય છે. ” આ સૂત્રપાઠ પન્ત ગ્રહણ કરવુ જોઈએ. જ પ્રમાણે તિય બ્લેક ક્ષેત્રલેાકમાં ઉર્ધ્વલાક क्षेत्रखेोऽमां ने बोम्भां पशु अनंत वर्षा पर्याय। छे, म समन्वु " भावओ णं अलोए नेवत्थि वण्णपज्जवा, नेबत्थि अगुरुय लहुयपज्जवा, एगे अजीवदव्वदे से जाव अणतभागूणे " लावनी अपेक्षा अलोऽभां वर्षा पयायो पशु नथी, શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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