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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका २० ११ उ० ९ सू०२ शिवराजर्षिचरितनिरूपणम् ३३७ पर्णकुटी आसीत् तत्रैव उपागच्छति, उपागत्य किढिनसांकायिकं स्थापयति, 'ठवेत्ता, वेदि वड्ढेइ, बडित्ता उवलेषणसंमज्जणं करे' किढिनसांकायिकं स्था. पयित्वा वेदिकां बर्द्धयाते-प्रमार्जयति, वर्द्धयित्वा-प्रमाय उपलेपनसंमार्जन करोति, तत्र गोमयादिना उपलेपलेपनम् , संमार्जन-संमार्जनिकया शोधनम् , 'उचलेवणसंमज्जणं करित्ता दब्भसगम्भकलसहत्थगए, जेणेव गंगामहानई तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता गंगामहानइं ओगाहेइ' उपलेपनसंमार्जनं कृत्वा दर्भसगर्भकलशहस्तगत:-दौं : सगर्भीयुक्तः कलशो हस्तगतो यस्य स तथाविध: सन् यत्रैव गङ्गामहानदी आसीत्-तत्रैव-उपागच्छति, उपागत्य महानदीम् अवगा. हते स्नातुं गङ्गां प्रविशति, 'ओगाहेत्ता जलमज्जणं करेइ, करेत्ता, जलकीड करेइ' गङ्गां महानदीम् अवगाह्य-प्रविश्य जलमज्जनं-जलान्तवुडनं करोति, कृत्वा, जल. क्रीडां-जले इतस्ततस्तरणरूपां करोति, 'करेत्ता, जलाभिसेयं करेइ, करेत्ता, इयगं ठवेइ' वहां आकर के उसने उस वंशनिर्मित पात्र को एक ओर रख दिया 'ठवेत्ता वेदि वट्टई' रख कर उसने वेदी को साफ-झाडकर स्वच्छ किया. 'वत्तिा उवलेवणसंमज्जणं करेह' स्वच्छ करके फिर उसने उसे गोबर आदि से लीपा, फिर उसे बुहारी से युहारा, 'उवले. संमज्जणं करित्ता भसगम्भकलसहत्थगए जेणेव गंगामानई तेणेव उवागच्छइ ' लीपने और बुहारने के बाद फिर वह दर्मयुक्तकलश को हाथ में लेकर गंगा महानदी की ओर चला 'उवागच्छित्ता गंगा महानई ओगाहेइ' वहां पहुंच कर उसने उस नदी में नहाने के लिये प्रवेश किया, 'ओगाहेत्ता जलमज्जण करेइ' प्रवेश करते ही उसने पहिले उसमें डुबकी लगाई। 'करेता जलकीडं करेइ' डुबकी लगा कर फिर वह कुछ समयतक उस में इधर उधर तैरा. 'करेत्ता जलाभिसेपं मेर मा ५२ भूमी हीधु. “ठवेत्ता वेदि वड्ढइ " त्या२ मा तो वहीन पाणीीन सा ४२. "वढित्ता उवलेवणसमज्जण करेइ" त्या२ मा तो तीन सीपी पीने वन ४२वाने योग्य मनावी. “उवलेवण समज्जण करित्ता दब्भसगम्भकलसहत्थगए जेणेव गंगामहानई वेणेव उवागરાણ * વેદિકાને લીંપીગૂંપીને, હાથમાં દર્ભયુક્ત કળશ ગ્રહણ કરીને તેણે । महानही त२३ प्रयाय अयु. “उवागच्छित्ता गंगा महानई' ओगाहेइ" त्या पचान त । महा नहीन प्रम तय. " ओगाहेना जलमज्जण करेइ, " पाम तरी पडेल तो तेथे तभi isी मारी, "करेत्ता जलकीड करेह" त्या२ मा तभा थाडी १२ सुधी sist श-माम तभ तया, “करेत्ता जलाभिसेय' करेइ" त्या२ मा तए पाताना भरत पर पाय શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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