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________________ ३३६ भगवतीस्त्रे मूलानि च, त्वचाश्च, पत्राणि च, पुष्पाणि च, फलानि च, बीजानि च, हरितानि च, तानि ग्रहीतुम् अनुजानातु अनुज्ञां ददातु इति कृत्वा-इत्युक्त्वा पौरस्त्यां पूर्व दिशं प्रसृत्य यानि च तत्र कन्दानि च. यावत्-मूलानि च, त्वचाश्च, पत्राणि च, पुष्पाणि च, फलानि च, बीजानि च, हरितानि च, तानि गृह्णाति, 'गिण्हित्ता किढिणसंकाइयं भरेइ, भरेत्ता, दब्भेय, कुसेय, समिहाओय, पत्तामोडं च गेण्हइ' तानि कन्दादीनि गृहीत्वा किढिनसांकायिक-वंशनिर्मितपात्रविशेष भरति-कन्दादिभिः परिपूरयति, किढिनसांकायिकं भृत्वा-परिपूर्य, दर्भाश्च मूलसहितान-कुशांश्चछिन्नमूलान् द नित्यर्थः, समिधश्च-हवनयोग्यकाष्ठखण्डानि, पत्रामोटकंचतरुशाखामोटितपत्र गृह्णाति 'गिव्हित्ता' जेणेव सए उडए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता किढिणसंकाइयगं ठवेई दर्भादिकं गृहीन्या, यत्रैव स्वकः उटजःजो कन्द हों, मूल हों, छाल हों, पत्र हों पुष्प हों, फल हों बीज हों, और हरित वनस्पति हों-उन सब को में लेलू-इस प्रकार कह कर वह उस दिशा की ओर चल दिया 'पसरित्ता जाणिय तत्थ कंदाणिय जाव हरियाणि य ताइ गेण्हह' चलकर उसने उस दिशावर्ती जितने कंद यावत् हरित पदार्थ थे-उन सबको ले लिया. 'गिमिहत्ता किढिण. संकाइयं भरेइ' लेकर अर्थात् उठाकर फिर उसने उन सब को उसवंश निर्मित पात्र विशेष में रख लिया इसके बाद उसने मूल सहित दर्भो को छिन्न मूलवाले कुशों को, हवन योग्य लकडियों के टुकड़ों को और वृक्षों की शाखाओं को जुकाकर तोडेगये पत्रों को लिया. गिम्हित्ता जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छद' लेकर फिर वह जहां अपनी ज्ञोपडी थी वहां पर चला आया. 'उवागच्छित्ता किढिणसंका લીલી વનસ્પતિ મળી શકે, તે ગ્રહણ કરવાની આપ મને અનુમતિ આપે” આ પ્રમાણે સોમ લેકપાલને પ્રાર્થના કરીને તેઓ પૂર્વ દિશા તરફ ગયા. " पसरित्ता जाणिय तत्थ कंदाणि य, जाव हरियाणि य ताई गेण्हाइ” पूर्व દિશામાં જઈને, તે દિશામાંથી જે જે કન્દ આદિ લીલી વનસ્પતિ પર્વતના पहा भन्या, ततो सीघi. “ गिहित्ता कढिणसंकाइय' भरेइ” भने તે પદાર્થોને તેણે તે વાંસ નિર્મિત પાત્ર વિશેષમાં ભરી લીધાં. ત્યાર બાદ તેણે મૂળ યુક્ત દર્ભને, છિન્નમૂળવાળાં કુશને અને હવનને ગ્ય સમિધને (હવનમાં હામવાને ચગ્ય કાઠેને) ગ્રહણ કર્યા, અને વૃક્ષોની શાખાઓને नीचे नभावीन पान तयां. “गित्तिा जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छ" ॥ उन्हहिसाभश्रीन सनत पोतानी पडीमा छ। ३." उवागछित्ता किढिणसकाइयग' ठवेइ" त्या भावाने ते ते सनिमित पात्र विशेषने શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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