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________________ भगवतीसूत्रे आयंते, चोवखे परमसुइभूए, देवयपितिकयकज्जे' जलक्रीडां कृत्वा, जलाभिषेकंमस्तकोपरि जलक्षरणं करोति, कृत्वा, आचान्तः-कृताचमनः चोक्षः-धूल्यादिद्रव्याफ्नयनात् पवित्रीभूतः, अतएव परमशुचिभूतः, दैवत-पितृकृतकार्यः दैवतानां पितृणांच कृतं कार्य जलाञ्जलिदानादिकं येन स तथाविधः सन् 'दन्भसगम्भकलसहत्क्षगए, गंगाओ महानईओ पच्चुत्तरइ' दर्भसगर्भकलशहस्तगतः-दर्भयुक्त कलशसहितः गङ्गाया महानद्या प्रत्युत्तरति-बहिनिच्छति 'पच्चुत्तरेत्ता, जेणेव सए उडए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता, दब्भेहिय, कुसेहिय, वालुयाएहि य, वेई रएइ, रइत्ता, सरएणं अरणिं महेइ' गङ्गाया महानदीतो निसृत्व यत्रैव स्वको निजः, उटजः-पर्णकुटी आसीत् , तत्रैद-उपागच्छति, उपागत्य, दर्भेश्व-समूलैः; कुशेश्व-निमूलैः, वालुकाभिश्च वेदि रचयति, रचयित्वा शरकेण निर्मन्थनकाष्ठेन अरणि निर्मन्थनीयकाष्ठं मनाति-घर्षयति, 'महेत्ता, अग्गि पाडेइ, पाडेत्ता, अग्गि करेइ ' तैर कर उसने अपने माथे पर पानी डाला. पानी डालकर 'आयंते, चोक्खे, परमसुइभूए देव य पितिकयकज्जे' आचमन किया, (अंजली में पानी लेकर पिया) इस प्रकार धूलि आदि को अपने शरीर ऊपर से हटाने से परमशुचिभूत हुए उसने पितरों को एवं देवताओं को जलांजलि आदि देने रूप कार्य किया. फिर वह दर्भयुक्त कलश को हाथ में लिये हुए ही गंगा महानदी में से बाहर निकल आया. 'पच्चुत्तरेता जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ' निकल कर वह जहां अपनी झोपडी थी. वहां पर आया. 'उवागच्छित्ता दभेहि य कुसेहिय वालुयाए हि ग वेई रएइ, रइत्ता सरएण अरणिं महेइ' वहां आ करके उसने समूल दो से, निर्मूल कों से और बालुका से वेदी की रचना की, रचना कर शरक सेनिर्मथन काष्ठ से-दूसरे निर्मन्थनीय काष्ठ को घिसा, 'महेत्ता अग्गि नायु. “ आयते, चाक्खे परमसुइभूए देव य पीतिकयकज्जे" त्या२ पाहतो આચમન કર્યું. આ રીતે શરીર પરથી મેલ આદિ દૂર થવાને કારણે પરમ શચિત થયેલા તે શિવરાજર્ષિએ દેવતાઓને તથા પિતૃઓને જલાંજલિ અર્પણ કરી. ત્યાર બાદ દર્ભયુક્ત કલશને હાથમાં લઈને તે મહાનદી ગંગાमाथी भडा२ नये.. “पच्चुत्तरेत्ता जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छई" महार नीजान त पातानी ५भा पाछ। श्या. “ उवागच्छित्ता दब्भेहि य, कुसेहिय, बालुयाएहि य वेई रएइ, रइत्ता सरएण अरणिं महेइ” त्यां सावा तो સમૂળ દર્ભો, નિર્મૂળ કુશે અને વાલુકા (રેતી) ની મદદથી તેમ કરવાની વેદી બનાવી. આ રીતે વેદીની રચના કરીને તેણે નિમથન કાષ્ટ વડે બીજા નિર્મથન કાષ્ઠને ઘસ્યું. (જે લાકડાંઓને ઘસવાથી અગ્નિ પ્રકટે છે તે લાકડાને શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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