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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ११ उ० १ सू० १ उत्पले जीवोत्पातनिरूपणम् २६१ जीवाः किं वेदका भवन्ति ? किंवा पुरुषवेदका भवन्ति ? किंवा नपुंसक वेदका भरन्ति ? भगवानाह - गोयमा ! नो इस्थिवेदगा, नो पुरिसवेद्गा, नपुंगवेदवा, नपुंगवेदगावा २३' हे गौतम! उत्पलस्था जीवाः नो स्त्रीवेदका भवन्ति, नो वा पुरुषवेदका भवन्ति, अपितु उत्पलस्य एकपत्रतायां जीवस्य एकत्वात् नपुंसक वेदकञ्च भवति, द्वयादिपत्रतायांतु जीवानामनेकत्वात् नपुंसकवेदका भवन्ति । इति त्रयोविंशं स्त्रीवेदद्वारम् । २३ । अथ चतुर्विंश बन्धकद्वारमाश्रित्य गौतमः पृच्छति- 'तेणं भंते । जीवा किं इत्थवेदबंधगा, पुरिसवेदबंधगा, नपुंसगवेद बंधगा ? ' हे भदन्त ! ते खलु उत्पलस्था जीवाः किं स्त्रीवेदकर्मबन्धका भवन्ति ? किंवा पुरुषवेदकर्मबन्धका भवन्ति ? हे भदन्त ! उत्पलस्थ वे जीव क्या स्त्रीवेदवाले होते हैं । अथवा पुरुष वेदवाले होते हैं ? या नपुंसक वेदवाले होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-' गोयमा ! ना इस्थिवेदगा नो पुरिसवेदगा, नपुंसगवेद एवा नपुंगवेद्गा वा' हे गौतम! उत्पलस्थ वे जीवन स्त्री वेदवाले होते है और न पुरुष वेदवाले होते हैं किन्तु उत्पल की एकपत्रावस्था में जीव की एकता में वह जीव नपुंसक वेदवाला होता है और उत्पलकी वयादि पत्रावस्था में जीवों की अनेकता में वे सब जीव नपुंसक वेद वाले होते हैं । इस प्रकार से यह २३वां स्त्री वेदादि द्वार है । अब गौतम २४ वें बन्धक द्वार को आश्रित करके प्रभु से ऐसा पूछते हैं' ' तेणं भंते! जीवा किं इस्थीवेद बंगा पुरिसवेदबंधगा, नपुंगवेदबंधा' हे भदन्त । वे उत्पलस्थ जीव क्या स्त्री वेदकर्म के बंधक होते हैं ? अनवा - पुरुषवेद कर्म के बंधक होते हैं ? या नपुंसक જીવા શું સ્ત્રીવેદવાળા હાય છે ? કે પુરુષવેદવાળા હોય છે? કે નપુંસકવે. ઢવાળા હોય છે ? "" महावीर अलुना उत्तर- " गोयमा ! " हे गौतम! " नो इत्थिवेदगा, नो पुरिसवेदगा, नपुंगवेदए वा, नपुंसगवेदगा वा તે ઉત્પલસ્થ જીવા શ્રીવેદવાળા પણ હાતા નથી, પુરુષવેદવાળા પણ હેતા નથી, પરંતુ જ્યારે તે ઉત્પન્ન એક પત્રાવસ્થામાં હાય છે, ત્યારે તેમાં રહેલે એક જીવ નપુસક વેદવાળે! હાય છે અને જ્યારે તે ઉત્પલ અનેક પત્રાવસ્થામાં હોય છે, ત્યારે તેમાં રહેલા બધાં જીવા નપુંસક વેદવાળા હાય છે. ૨૪ માં વેદાદિ અન્ધક દ્વારની પ્રરૂપણા-ગૌતમ સ્વામીના પ્રશ્ન" तेण भंते! जोवा किं इत्थीवेदबंधगा, पुरिसवेद बंधगा, नपुंसगवेदबंधगा ? " શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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