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भगवतीसूत्रे वक्तव्यता प्रतिपादिता तथैव प्रतिपत्तव्या, लोकपालानामपि तेषां दक्षिणेन्द्राणां यथा धरणस्य लोकपालानां वक्तव्यतोक्ता तथैव वक्तव्या, 'उत्तरिल्लाणं, इंदाणं जहा भूयाणंदस्स लोगपालाणवि तेर्सि जहा भूयाणंदस्स लोगपालाणं' उत्तरेन्द्राणां वक्तव्यता यथा भूतानन्दस्य वक्तव्यतोक्ता तथैव बोध्या, तेषाम् उत्तरेन्द्राणां लोकपालानामपि वक्तव्यता यथा भूतानन्दस्य लोकपालानां वक्तव्यता प्रतिपादिता तथैव प्रतिपत्तव्या, 'नवरं इंदाणं सम्वेसिं रायहाणीओ, सीहासणाणीय सरिसणामगाणि' नवरं विशेषस्तु इन्द्राणां सर्वेषां राजधान्यः सिंहासनानिच सदृशनामकानि अवसेयानि, परियारो जहा तइयसए, पढमे उद्देसए' परिवार : सर्वेषाम् इन्द्राणां यथा तृतीयशतके प्रथमे उद्देश के प्रतिपादितस्तथैव प्रतिपत्तव्यः धरणिंदस्स लोगपालाणं पि तेसि जहा धरणस्स लोगपालाणं' जो दक्षिण दिशाके ईन्द्र हैं, उनकी वक्तव्यता धरणेन्द्र की वक्तव्यता जैसी कही गई है। तथा दक्षिणेन्द्र लोकपालों की वक्तव्यता धरण के लोकपालों की वक्तव्यता के अनुसार कही गई है। 'उत्तरिल्लाणं इंदाणं जहा भूयाणंदस्स, लोगपालाणंवि तेसिं जहा भूयाणंदस्स लोगपालाणं' उत्तरेन्द्रों की वक्त. व्यता भूतानन्द की वक्तव्यता के जैसी कही गई है। तथा उत्तरेन्द्रों के लोकपालों की वक्तव्यता भूतानन्द के लोकपालों की वक्तव्यता तुल्य कही गई है, ऐसा जानना चाहिये। किन्तु-'नवरं इंदाणं सव्वेसिं रायहाणीओ, सीहासणाणी य सरिसणामगाणि' जो विशेषता है वह राजधानी और सिंहासनों को लेकर है क्योंकि सब इन्द्रों की राजधानियां और सिंहासन इन्द्रों के नामानुसार कहे गये हैं। 'परियारो जहा तइय. सए पढमे उद्देसए' समस्त इन्द्रों का परिवार तृतीय शतक के प्रथम વક્તવ્યતા ધરણેન્દ્રની વકતવ્યતા અનુસાર સમજવી. તથા દક્ષિણેન્દ્રોના લેકપાલની વક્તવ્યતા ધરણના લેકપાલની વકતવ્યતા પ્રમાણે જ સમજવી. " उत्तरिल्लाण इंदाण जहा भूयाणदस्स, लोगपालाण वि तेसिं जहा भूयाण'दस लोगपालाण" उत्तर शान छन्द्रोनी पतव्यता भूताननी વક્તવ્યતા પ્રમાણે સમજવી અને ઉત્તરેન્દ્રોના લેકપાલની વકતव्यता भूतानन्दना सोपासानी पतव्यता २वी सभापी. “नवर" ५२न्तु “इंदाण सम्वेसिं रायहाणीओ, सीहासणाणी य सरिसणामगाणि "मनी રાજધાની અને સિંહાસનોના નામમાં જ ફેર પડે છે. દરેક ઈદ્રની રાજ धानी मने सिडासननु नाम तना नाम प्रमाणे ४ सभा. “परियारो जहा तइयसए पढमे उद्देसए" भरत न्द्रीना परिवारनु ४थन त्रीan शतना પહેલા ઉદેશામાં આપવામાં આવેલ છે, તે તે પ્રકારનું કથન અહીં પણ ગ્રહણ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯