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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका २०१० उ०५ ०२ चमरेन्द्रादीनामप्रमहिषीनिरूपणम् १७५ 'लोगपालाणं सव्वेसि रायहाणीओ, सीहासणाणि य सरिसनामगाणि, परियारो जहा चमरस्स लेागपालाणं' लोकपालानां सर्वेषां राजधान्यः, सिंहासनानिच सदृशनामकानि अबसेयानि, लोकपालानां परिवारः यथा चमरस्य लेोकपालानामुक्तस्तथैव वक्तव्यः अथ व्यन्तरविषये स्थविराः पृच्छन्ति-कालस्स णं भंते ! पिसाथिदस्य पिसायरप्णो कइ अग्गम हिसीओ पण्णत्ताओ ? हेभदन्त ! कालस्य खलु पिशाचेन्द्रस्य पिशाचराजस्य कति अग्रमहिष्य : प्रज्ञप्ता : ? भगवानाह-' अज्जो! चत्तारि अग्गम हिसीओ पण्णत्ताओ' हे आर्या : कालस्य पिशाचेन्द्रस्य चतन : अग्रमहिष्यः प्रझप्ताः, तं जहा-कमला १, कमलप्पभा २ उप्पला ३ मुदंसणा ४ तद्यथाकमळा१ कमलप्रभार उत्पलाई सुदर्शना४,च। 'तत्थ णं एगमेगाए, देवीए, एगमेगं उद्देशक में कहे अनुसार है। 'लोगपालाणं सम्वेसिं रायहाणीओ, सीहासणाणि य सरिसनामगाणि, परियारो जहा चमरस्स लोगपालाणं' समस्त लोकपालों की राजधानियां एवं सिंहासन लोकपालों के जैसे नाम हैं उनके अनुरूप हैं। तथा इनका परिवार चमर के लोकपालों के परिवार जैसा है ऐसा समझना चाहिये। अव स्थविर व्यन्तरों के विषय में पछते हैं-'कालस्स णं भंते ! पिसायिंदस्स पिसायरण्णो कइ अग्गमा हिसीओ पण्णत्ताओ' है भदन्त ! पिशाचों के इन्द्र जो पिशाचों के राजा जो काल हैं उनकी अग्रमहिषियां कितनी कही गई हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'अज्जो! चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्तोओ' हे आयो ! पिशाचेन्द्र की चार अग्रमहिषियां कही गई हैं। तं जहा' जो इस प्रकार से हैं-'कमला १, कमलप्प मा २, उप्पला ३, सुदंसणा ४' ४२. “ लोगपालाण सव्वेसिं रायहाणोओ सीहासणाणि य सरिसनामगाणि, परियारो जहा चमरस्स लोगपालाण" समस्त सोयाबीनी २४थानीय। मनसिहासनानां નામ, તે લોકપાલના નામ પ્રમાણે જ સમજવા. તે લોકપાલના પરિવારનું કથન ચમરના લોકપાલના પરિવારના કથન પ્રમાણે સમજવું. હવે સ્થવિર ભગવાન મહાવીર પ્રભુને વ્યન્તરો વિષે પ્રશ્ન પૂછે છે___“कालस्स ण भंते ! पिसायिंदस्स पिसायरनोकइ अग्गम हिसीओ पण्णत्ताओ? હે ભગવન! પિશાચોના ઇન્દ્ર, પિશાચરાજ કાળને કેટલી અઝમહિષીઓ છે? भडावीर प्रभुने। उत्तर-" अज्जो चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ" है माय!! पिशायेन्द्रने या२ अयमलिषीय। ४ी छे. "तंजहा" तमना नाम मा प्रमाणे छ-"कमला, कमलप्पभा, उप्पला, सुदंसणा" (१) भसा, (२) भरला, (3) S५ मन (४) सुचना. “तत्क्षण एगमेगाए देवीए एगमेग શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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