SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 187
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१० ४०५ सू०२ चमरेन्द्रादीनामप्रमहिषनिरूपणम् १७३ मेगाए देवी, अवसेसं जहा चमरलोगपालाण एवं सेसाणं तिष्ठ त्रि लोगपाळाण तत्र खलु चतसृषु नागवित्तस्याग्रमहिषीषु मध्ये एकैकस्याः देव्याः अवशेष यथा चमरलोकपालानां प्रतिपादितम्, तथैव प्रतिपत्तव्यम्, तथाचैकैकस्याः अग्रमहियाः एकैकं देवीसहस्र परिवारः प्रज्ञप्तः ताभ्यश्व एकैका देवी, अन्यत् एकैक देवीers परिवार विकुर्वितु प्रभुः समर्थ, एवमेव सपूर्वापरेण चत्वारि देवी सहस्राणि परिवारो भवति, तदेतत् त्रुटिकं नाम वर्गः उच्यते, इत्यादि सर्व चमरलोकपालोक्तरीत्या स्वयमूहनीयम् एवं पूर्वोक्तरीत्येव शेषाणां नागवित्तातिरिक्तानां त्रयाणामपि लोकपालानां वक्तव्यता बोध्या । 'जे दाहिणिल्लानिंदा, तेर्सि जहा धरणिदस्स, लोगपालाणंपि तेर्सि जहा धरणस्स लोगपालाणं' ये दक्षिणेन्द्राः सन्ति तेषां वक्तव्यता यथा धरणेन्द्रस्य , सुजाया ३, सुमणा ४' सुनन्दा १, सुभद्रा २, सुजाता ३ और सुमना ४ 'तत्थणं एगमेगाए देवीए अवसेसं जहा चमरलोगपालाणं, एवं सेसाणं तिपद वि लोगपालाणं' इनमें एक २ देवी का देवीपरिवार चमर के लोपालों की अग्रमहिषियों के देवी परिवार जैसा कहा गया है। इस प्रकार एक २ देवी का देवी परिवार एक एक हजार देवियों का हो जाता है । इनमें से इन चार अग्रमहिषियों में से एक एक अग्रमहिषी ऐसी शक्ति रखती है जो वह अपनी विकुर्वणा द्वारा एक २ हजार देवियों को और निष्पन्न कर सकती है। इस प्रकार नागवित्त लोकपाल का देवी परिवार ४ हजार का कहा गया है। इस परिवार का नाम त्रुटिक शब्द से कहा है इत्यादि सब कथन चमर लोकपालों की तरह जानना चाहिये। इसी तरह का कथन नागवित्तातिरिक्त और तीन इसके लोकपालों के संबंध में जान लेना चाहिये । 'जे दाहिणिहाणिंदा तेसिं जहा सुन्नता भने (४) सुभना " तत्थणं एगसेगाए देवीए अवसेसं जहा चमरलोग पालाण, एवं सेसाण' तिन्ह वि लोगपालाण ” ते प्रत्येक अश्रमहिषीना देवी પરિવાર ચમરના લેાકપાલેની અગ્રમહિષીઓના દૈવી પરિવાર જેટલા કહ્યો છે. આ રીતે નાગવિત્ત લેાકપાલની પ્રત્યેક પટ્ટરાણીના ૧૦૦૦-૧૦૦૦ દેવીઓના પરિવાર કહ્યો છે, કારણ કે તે પ્રત્યેક પટ્ટાણી ૧૦૦૦-૧૦૦૦ દેવીઓનુ પેાતાની વૈક્રિયશક્તિથી નિર્માણ કરી શકે છે તેથી ચારે અગ્રમહિષીઓના ૪૦૦૦ દેવીએના કુલ પરિવાર કહ્યો છે. આ રીતે નાગવિત્ત લેાકપાલને દેવીપરિવાર ૪૦૦૦ના છે. તે પરિવારને ત્રુટિક કહે છે. આ પ્રકારનું કથન નાગવિત્ત સિવાયના भाषा विषे पशु सभवु " जे दाहिणिल्लानिंदा तेसिं जहा घर दिस्स लोगपालाण पि तेसिं जहा धरणास लोगपालाण " ने हक्षिना छेन्द्रो छे, तेभनी શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy