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________________ प्रमेय वन्द्रिका टीका श०१० ३०५ ०१ बरेन्द्रादीनां त्रयस्त्रिंश कनि कपणम् १३१ आसीत् , न कदापि न भवति, अपितु सदैव भवति-नकदापि न भविष्यति-अपितु सर्वदैव भविष्यति, यावत् ध्रुवं शाश्वाम् नित्यम् , अव्युच्छित्तिनयार्थतया अनादिप्रवाहेण द्रव्यार्थि कनयेन अन्ये केचन ईशानस्य त्रायस्त्रिंशकाश्चयवन्ति, अन्ये केचन त्रायस्त्रिंशका उपपद्यन्ते न तु सर्वे सर्वथा समुच्छिद्यन्ते । गौतमः पृच्छति'अस्थि णं भंते ! सणंकुमारस्स देविंदरस देवरण्णो पुच्छा' हे भदन्त ! सन्ति खलु सनत्कुमारस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य त्रायस्त्रिंशकाः देवाः त्रयस्त्रिंशत् सहायाः? इति पृच्छा, भगवानाह-'हंता, अत्थि' हे गौतम ! हन्त सत्यम् सन्ति सनत्कु मारस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य त्रायस्त्रिंशका देवाः, गौतमः पृच्छति-से केणटेणं, जहा-धरणस्स तहेव एवं जाव पाणयस्स एवं अच्चुयस्स जाव अन्ने उववज्जति' में सर्वदा विद्यमान रहता है, क्योंकि यह ध्रुव शाश्वत नित्य है यद्यपि वहां से अन्य कितनेक त्रायस्त्रिंशक देव चव जाते हैं और अन्य कितनेक त्रायस्त्रिंशक देव उत्पन्न होते हैं-फिर भी द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा से अनादि प्रवाह की दृष्टि से इनका सबका सर्वथा अभाव नहीं होता है। ___ अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-' अस्थिण भंते ! सण. कुमारस्स देविंदस्स देवरणो, पुच्छा' हे भदन्त ! देवेन्द्र देवराज सनत्कुमार के सहायकभूत तेंतीस त्रायस्त्रिंशक देव होते हैं क्या? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-हां, गौतम ! देवेन्द्र देवराज सनत्कुमार के सहा. यकभूत ३३ त्रायस्त्रिंशक देव होते हैं। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'से केणटेण भंते ! जहा धरणस्स तहेव एवं जाव पाणयस्स एवं अच्चुयस्स जाव अन्ने उववज्जंति' हे भदन्त ! ऐसा आप किस ત્રણે કાળમાં કાયમ રહે છે, કારણ કે તેમનું નામ તે ધ્રુવ, શાશ્વત અને નિત્ય કહ્યું છે. હા, એવું અવશ્ય બને છે કે કેટલાક ત્રાયશ્ચિંશક દેવે ત્યાંથી એવે છે અને કેટલાક ઉપન પણ થતા રહે છે. દ્રવ્યાર્થિક નયની અપેક્ષાએ -અનાદિ પ્રવાહની દષ્ટિએ તેમને સૌને સર્વથા અભાવ સંભવી શકતો નથી. गौतम स्वामीन। प्रश्न-“ अस्थिण भते ! सणंकुमारस्स देविदस्स देवरष्णो पुच्छा" भगवन् ! हेवेन्द्र, ४३२१४ सनमारना सहाय सेवा 33 त्राय. શિક દેવ હોય છે ખરાં ? महावीर प्रभुना उत्तर-हता, अत्थि" 81, गौतम! देवेन्द्र १२ સનકુમારને સહાયભૂત થનારા ૩૩ ત્રાયઅિંશક દે હોય છે.. गौतम स्वामीन। प्रश्न-" से केणठेण भते" त्याहि मावन् ! मे આપ શા કારણે કહે છે કે દેવેન્દ્ર દેવરાય સનકુમારના સહાયભૂત ૩૩ ત્રાયસિંશક દેવે હોય છે? શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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