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________________ - भगवतीसूत्रे त्वात् अधापतितम् उत्तरीयं वस्त्राञ्चलं यस्याः सा तथा — मुच्छावस गट्टचेतगुरुई सुकुमालविकिन्न केसहत्था ' मूविशनष्टचेतोगुर्वी, मूविशात् नष्टे चेतसि गुर्वी अलघुशरीरा या सा तथा, सुकुमारविकीर्ण केशहस्ता सुकुमारः स्वरूपेण, विकीर्णा व्याकुलचित्ततया केशहस्तः केशपाशो यस्याः सा तथा, यद्वासुकुमारा विकीर्णाः केशा हस्तौ च यस्याः सा तथा वा ' परसुणियत्तमचंपगलया निबत्तमहेनइंदलट्ठी विमुक्कसंधिबंधणा' परशुनिकृत्ता परशुनाकुठारेण छिन्ना चम्पकलता, इव, निवृत्तमहानिवृत्तीत्सवा इन्द्रयष्टिरिव इन्द्रध्वजेव विमुक्तसन्धि बन्धना शिथिलसन्धिबन्धना 'कोहिमतलंसि धसत्ति, सव्वंगेहिं संनिवडिया' कुट्टिमतले पाषाणशिलादिभिः संबद्धभूमितले धमइति शब्देन सर्वाङ्गैः सन्निपतिता । 'तए णं सा जमालिस्स खत्तियकुमारस्स माया' ततः खलु सा जमाले: क्षत्रियकुमारस्य माता, ' ससंभमीयत्तियारा तुरियकंचणभिंगारमुहविणिग्गयसीयलविमलजलधाराए परिसिंचमाणनिव्ववियगायलट्टी' ससंभ्रमापवर्तितयावसणटुचेतगुरुई, सुकुमालविकिन्नकेसहत्था ' मूछ के आनेसे उसकी चेतना नष्ट हो गई, अतः उसके शरीर में भारीपन अधिक हो गया, उसका सुकुमार केशपाश विखर गया, अथवा उसके सुकुमार केश और हाथ ढीले पड़ गये 'परसुणियतव्य चंपगलया, निव्वत्तमहेन्व इंदलट्ठी विमुक्कसंधिबंधणा' अतः वह परशुसे काटी गई चंपकलताके समान और महोत्सवके समाप्त हो जाने पर इन्द्रध्वजके समान शिथिल सन्धि बन्धनवाली हो गई और ऐसी दशामें वह 'कुहिमतले ' पाषाण शिला निर्मित जमीन पर-पक्के फरश पर समस्त अङ्गोंसे " धस "से गिर पड़ी 'तएणं सा जमालिस्त खत्तियकुमारस्स माया ससंभमीयत्ति यारा तुरियकंचभिंगारमुहविणिग्गयसलिलविमलजलधाराए व्यस्त गयु. " मुच्छावसणटुचेत गु इ, सुकुमालविकिन्नकेसहत्था ” भू આવી જવાથી તે ચૈતન્ય ગુમાવી બેઠી, તેથી તેનું શરીર અધિક ભારે લાગવા માંડયું, તેને સુકુમાર કેશપાશ વિખરાઈ ગયે અથવા તેની સુકુમાર કટિ અને डाय ढlai ५ गयi. “ परसुणियत्तव्वच पगलया, निश्चत्तमहेव इंदलट्ठी विमलसंधिबंधणा" तथा त पुछाडीथी ४१५वामा मावेसी २५४सताना २वी અને મહોત્સવ પૂરો થયા બાદ ઈન્દ્રવજની સમાન શિથિલ સન્ધિબંધનવાળી य . सेवी डासतमा ते “ कुट्टिमतले " ३२समधी ५२-पाषा शिक्षानिभिर लायतजिया ५२ " धस " 'डी' सेवा मा साथे ५डी गई "तएण सा जमालिस्स खत्तियकुमारस्स माया ससंभीयत्तियारा तुरिय कंचभिंगारमहविणिग्गयसलिलविमलजलधाराए परिसिंचमाणनियक्यिायलट्ठी " श्री. भगवती सूत्र: ८
SR No.006322
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 08 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages685
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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