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________________ प्रमेयचन्द्रिका टो० श०९ ७० ३२ सू० ७ भवान्तरप्रवेशनकनिरूपणम् १७७ पङ्कपभायाम्, किं वा धूमप्रभायाम् , कि बातमः प्रभायाम् किंवाऽधःसप्तम्यांभवन्ति? इति पृच्छा ? भगवानाह-'गंगेया ! रयणप्पभाए वा होज्जा, जाव अहेसत्तमाए वा होज्जा' हे गाङ्गेय ! अष्ट नैरयिका नैरयिक प्रवेशन कुर्वन्तो रत्नप्रभायां वा भवन्ति, यावत् शर्करापभायां वा, वालुकाप्रभायां वा, पङ्कप्रभायां वा, धूमपभायां पा, तमःप्रभायां वा, अधःसप्तम्यां वा भवन्ति ७, अथ द्विकसंयोगिभङ्गप्रकारमाह'अहवा एगे रयणप्पभाए सत्त सकरप्पभाए होज्जा' अथवा एको रत्नप्रभायां, सप्त शर्करामभायां भवन्ति ' एवं दुयासंजोगो' एवम् अनेन ' एकः सप्त' इत्येवं हैं ? या तमःप्रभा में होते हैं ? या अधः सप्तमी पृथिवी में उत्पन्न होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-(गंगेया) हे गांगेय ! (रयणप्पभाए वा होज्जा, जाव अहे सत्तमाए वा होज्जा) नैरयिक प्रवेशन करते हुए आठ नारक रत्नप्रभा में भी उत्पन्न हो जाते हैं, शर्कराप्रभा में भी उत्पन्न हो जाते हैं, वालुकाप्रभा में भी उत्पन्न हो जाते हैं, पंकप्रभा में भी उत्पन्न हो जाते हैं, धूमप्रभा में भी उत्पन्न हो जाते हैं, तमः प्रभा में भी उत्पन्न हो जाते हैं और अधःसप्तमी पृथिवी में भी उत्पन्न हो जाते हैं। इस प्रकार से आठ नैरयिकों के ये एक संयोग में ७ भंग हैं। ___ अब इनके विकसंयोग में भङ्ग प्रकार को सूत्रकार प्रकट करते हैं(अहवा एगे रयणप्पभाए सत्त सकरप्पभाए वा होज्जा ) अथवा एक नारक रत्नप्रभा में उत्पन्न हो जाता है और सात नारक शर्कराप्रभा में उत्पन्न हो जाते हैं । ( एवं दुया संजोगो) इस १-७ रूप पूर्वोक्त प्रकार से द्विक संयोग कर लेना चाहिये, आठ नारकों के द्विक संयोग में सात કે તમભામાં ઉત્પન્ન થાય છે? કે અધાસપ્તમીમાં ઉત્પન્ન થાય છે? महावीर प्रभुन। उत्तर-“ गंगेया !" मांगेय! " रयणप्पभाए बा होज्जा, जाप अहे सतमाए वा होज्जा" ते 13 ना२। २त्नमामा ५y ઉત્પન્ન થાય છે, શરામભામાં પણ ઉત્પન્ન થાય છે, વાલુકાપ્રભામાં પણ ઉત્પન્ન થાય છે, પંકપ્રભામાં પણ ઉત્પન્ન થાય છે, ધૂમપ્રભામાં પણ ઉત્પન્ન થાય છે, તમ પ્રભામાં પણ ઉત્પન્ન થાય છે અને તમસ્તમપ્રભા નામની સાતમીનરકપૃથ્વીમાં પણ ઉત્પન્ન થાય છે. આ રીતે આઠ નારકેના એકસાયેગી ૭ભંગ બને છે. वे सूत्र॥२ तेमना विसयी मार्नु ४थन ४२ छ-" अहवा एगे रयणप्पभाए, सत्त सकरप्पभाए होज्जा" अथवा से ना२४ २त्नप्रभामा पन्न थाय छ भने माहीना सात ना२४ शराप्रमामा उत्पन्न थाय छे. एवं दुया संजोगो" मेरी प्रमाणे १-७ ३५ पडसा वि स योगी विना माहीना શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૮
SR No.006322
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 08 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages685
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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