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________________ प्रमेयचन्द्रिका टी०० ९ उ०३२ सू०१ गांगेयानगारवक्तव्यता उपपद्यन्ते, निरन्तरमपि नैरयिका उपपद्यन्ते । सान्तरं भदन्त ! असुरकुमारा उपपद्यन्ते, निरन्तरम् असुरकुमारा उपपद्यन्ते ? गाङ्गेय ! सान्तरमपि अमुरकुमारा उपपद्यन्ते, निरन्तरमपि असुरकुमारा उपपद्यन्ते । एवं यावत् स्तनितकुमाराः। सान्तरं भदन्त ! पृथिवीकायिका उपपद्यन्ते, निरन्तरं पृथिवीकायिका उपपद्यन्ते ? उववज्जंति) हे भदन्त ! नैरयिक अन्तर सहित उत्पन्न होते हैं या अंतररहित उत्पन्न होते हैं ? (गंगेया! संतरपि नेरच्या उववनंति, निरंतरंपि नेरइया उववज्जति ) हे गाङ्गेय ! नैरयिक अन्तरसहित भी उत्पन्न होते हैं और अन्तर विना के भी उत्पन्न होते हैं । ( संतरं भंते ! असुरकुमारा उववज्जंति, निरंतरं असुरकुमारा उबवजलि ) हे भदन्त ! अउरकुमार अन्तरसहित उत्पन्न होते हैं या विना अन्तर के उत्पन्न होते हैं ? (गंगेया! संतरंपि असुरकुमारा उधवजंति, निरंतरंपि असुरकुमारा उववज्जति) हे गाङ्गेय ! असुरकुमार अन्तरसहित भी उत्पन्न होते हैं और बिना अन्तर के भी उत्पन्न होते हैं। (एवं जाव थपियकुमारा) ऐसा ही कथन यावत् स्तनित कुमरों तक जानना चाहिये। (संतरं भते! पुढविकाइया उववज्जंति, निरंतरं पुढविकाइया उववज्जति) हे भदंत ! पृथिवीकायिक जीव अन्तर सहित उत्पन्न होते हैं या विना अन्तर के उत्पन्न होते हैं ? (गंगेया! नो संतरं पुढविकाइया उववति , निरंतरं पुढविकाइया उववज्जति) हे गांगेय ! पृथिवीकायिक जीव अन्तर सहित (माता२) उत्पन्न थाय छ ? (गगेया संतरपि नेरइया उत्रवज्जति, निरंतरपि नेरइया उववज्जति ) डांगेय ! ना२। मन्तरसहित ५ उत्पन्न थाय छ भने मन्त२२डित (निरन्त२) ५५ उत्पन्न थाय छे. ( संतरं भंते ! असुरकुमारा उववज्जति, निरंतर' असुरकुमारा उबवज्जति ? ) महन्त ! असुमारे। અન્તરસહિત ઉત્પન થાય છે કે નિરન્તર ( અન્તર રહિત) ઉત્પન્ન થાય છે ? ( गंगेया ! सतरपि असुरकुमारा उबवज्जति, निरंतर पि असुरकुमारा उववज्जति) હે ગાંગેય અસુરકુમારે અન્તરસહિત પણ ઉત્પન્ન થાય છે અને અન્તરરહિત ५५ उत्पन्न थाय छे. ( एवं जाव थणियकुमारा) स्तनितमा। ५यतना વિષે પણ આ પ્રમાણે જ સમજવું (संतर' भंते ! पुढविकाइया उववज्जति, निरंतर पुढविकाइया उबवज्जति ?) હે ભદન્ત ! પૃથ્વીકાયિક છે અન્તર સહિત ઉત્પન્ન થાય છે કે અન્તર २डित सत्पन्न थाय छ ? (गांगेया ! नो संतर पुढविकाइया उबवज्जति, निरंत पुढविकाइया उववज्जति ) 3 गांगेय ! पृथ्वी थि । मन्त२ (व्यवधान) सहित ઉત્પન્ન થતા નથી, પણ તેઓ અત્તર રહિત ( લગાતાર ) જ ઉત્પન્ન થાય છે. श्रीभगवती. सूत्र: ८
SR No.006322
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 08 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages685
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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