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________________ भगवतीसूत्रे वर्णकः, दतिपलाशं चैत्यम् । स्वामी समवस्मृतः, पर्षत् निर्गता, धर्मः कथितः, पर्षत् प्रतिगता। तस्मिन् काले तस्मिन् समये पार्थापत्यीयः गाङ्गेयो नाम अनगारो यत्रैव श्रमणो भगवान् महावीरस्तौव उपआगच्छति, उपागत्य श्रमणस्य भगवतो महावीरस्थ अदूरसामन्ते स्थित्वा श्रमणं भगवन्तं महावीरम् एवमवादी-सान्तरं भदन्त ! नैरयिका उपपद्यन्ते ? निरन्तरं नायिका उपपद्यन्ते? गङ्गेय ! सान्तरमपि नैरयिका उस काल में और उस समय में वाणिज्य ग्राम नाम का नगर था। (वण्णओ) वर्णक (दूइपलाले चेइए) दूतिपलास नाम का यक्षायतन था। (सामी समोसढे ) वहां महावीर प्रभु पधारे (परिसा निग्गया) उनको वन्दना और नमस्कार करने के लिये वहां की परिषद् आई। (धम्मो कहिओ) प्रभु ने धर्मोपदेश दिया (परिसा पडिगया) धर्मोपदेश सुनकर परिषद् अपने स्थान पर पीछे चली गई। (तेणं कालेणं तेणं समएणं पासावच्चिज्जे गंगेए नाम अणगारे जेणेव समगे भगवं महा. वीरे तेणेव उवागच्छद) उस काल और उस समय में श्री पाचप्रभु के शिष्य गाङ्गेय नामके अनगार जहां श्रमण भगवान महावीर विराजमान थे वहां आये (उधागच्छित्ता समणस्त भगवओ महावीरस्म अदूर सामंते ठिच्चा भगवं महावीरं एवं वयासी) वहां आकरके वे श्रमण भगवान महावीर के पास उचित स्थान पर ठहर कर उन्हों ने उनसे इस प्रकार पूछा-(संतरं भंते ! नेरइया उववज्जति, निरंतरं नेरइया तेणे मने ते समय वाणियाम नामे मे ना२ तु. (वण्णओ) तनु वान. ( दुइपलासे चेइए) त्या इति५स नामे यक्षायतन तुं. (सामी समो. सढे) त्यां महावीर स्वामी ५धार्या. (परिसा निगया) तेमने ! नम२४१२ ४२वान माटे परिष: तेमनी पासे ४. (धम्मो कहिओ) प्रभुये तेमन धीपहेश सभाव्य.. (परिसा पडिगया) ५२ष पातपाताने स्थान पाछी ३१. । तेणं कालेण तेणं समएण पासावच्चिज्जे गंगेए नामं अणगारे-जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ ) ते जे भने त समये श्री पासुना શિષ્ય ગાંગેય નામના અણુગાર જ્યાં શ્રમણ ભગવાન મહાવીર વિરાજમાન हता. त्या माव्या. ( उजागच्छिता समणस भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते ठिच्च! समणं भगवं महावीर एवं वयासी) त्यां मापीन श्रम मावान भड़ाવીરની પાસે ઉચિત સ્થાને થે ભીને તેમણે તેમને આ પ્રમાણે પૂછયું (संतर भंते ! नेरइया उववज्जंति, निरंतर नेरइया उबवज्जति १) ભદન્ત! નારકે અન્તર (વ્યવધાન) સહિત ઉત્પન્ન થાય છે કે અન્તરરહિત श्रीभगवती. सूत्र: ८
SR No.006322
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 08 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages685
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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