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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०८ उ.८ सू२५ सांपरायिककर्मवाधस्वरूपनिरूपणम् ७२ बद्धवान् , भन्त्स्यतिर बद्धवान , बध्नाति, न भन्स्यति२, बद्धवान् , न बध्नाति३, बद्धवान् , न बध्नाति, न भन्स्यति ?४, गौतम ! अस्त्येकको बद्धवान् , बध्नाति, भन्स्यति १, अस्त्येककः बद्धवान् , बध्नाति, न भन्स्यति २, अस्त्येकको बद्धवान् , न बध्नाति, भन्त्स्यति३, अस्त्येकको वद्धवान् , न बध्नाति, न भन्त्स्यति४, तद् भंते ! किं सादिकं सपर्यवसितं बध्नाति? पृच्छा तथैव, गौतम ! सादिकं वा जीवने पहिले इसे बांधा है वह वर्तमान में नहीं बांधता है, आगे वह इसे बांधेगा ? ३, (बंधी, न बंधइ, न वंधिस्सइ) भूतकाल में इसे जीव ने बांधा है वह अब इसे नहीं बांधता है और आगे भी वह इसे नहीं बांधेगा? ४, (गोयमा) हे गौतम ! (अत्थेगइए बंधी, बंधइ, बंधिस्सइ) किसी एक जीव ने इसे पहिले भूतकाल में बांधा है। वर्तमान में वह इसे बांधता है। आगे भी वह इसे बांधेगा। ( अत्थेगइए बंधी, बंधइ, न बंधिस्सइ) तथा कोई एक जीव ऐसा होता है कि जिसने इसे पहिले बांधा है, वर्तमान में वह इसे बांधता है आगे वह इसे नहीं बांधेगा २। (अत्थेगइए बंधी, न बंधइ, बंधिस्सइ) तथा कोई एक जीव ऐसा होता है कि जिसने इसे पहिले बांधा है, वर्तमान मे वह इसे नहीं बांधता है आगे वह इसे बांधेगा ३ । ( अत्थेगहए बंधी, न बंधइ, न बंधिस्सइ) तथा कोई एक जीव ऐसा होता है कि जिसने इसे पहिले यांधा है वर्तमान में वह इसे नहीं बांधता है आगे भी वह इसे नहीं बांधेगा (तं भंते ! कि साइयं सपज्जवसियं बंधइ०१, पुच्छा तहेव) हे भदन्त ! जीव म - छ, वर्तमानमा २ नथी, ५ भविष्यमा ४२शे ? ( बंधी बधइ न बधिस्सइ) (४) भूतमा ७वे ते मन! म य छ, तभानमा उरत नथी मने मविष्यमा ४२ नही १ (गोयमा !) गौतम ! ( अत्थे गइए बंधी, बधइ, बधिस्सइ) मे ७ भूतामा त भ यु छ, पतभानमा ५ ते तने माधे छ भने भविष्यमा ५५ ते मांधशे. (अत्थेग. इए बधी, बंधइ, न बघिस्सइ) तथा । २१ मे पाय डाय छ ભૂતકાળમાં સાંપરાયિક કર્મ બાંધ્યું હોય છે, વર્તમાનમાં પણ તેને બાંધતે. डाय छे ५५ भविष्यमा ते तेने नी मांधे. ( अत्थेगइए बधी, न बधइ, वाधिस्सइ) तथा ६४ ०१ मेव। 1य छे ४ थे भूतम तने मध्यु હોય છે, વર્તમાનમાં તે તેને બંધ નથી અને ભવિષ્યમાં તે તેને બાંધશે ( अत्थेगइए बधी, न बधइ, न बाधिस्सइ) तथा ४४७१ सवा डाय छ । જેણે ભૂતકાળમાં તેને બાંધ્યું હોય છે, વર્તમાનમાં તે તેને બાંધતું નથી અને भविष्यमा मांध नही.) ( त भते ! कि साइय सपज्जवसिय बधइ० १ पुच्चा
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭