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भगवती सपर्यवसितं बध्नातिर, अनादिकं वा सपर्यवसितं बध्नाति३, अनादिकं वा अपर्यवसितं बध्नाति४, नो चैव खलु सादिकम् अपर्यवसितं बध्नाति२, तद् भदन्त ! कि देशेन देशं बध्नाति, एवं यथैव ऐर्यापथिकबन्धकस्य यावत् सर्वेण सर्व बध्नाति ॥ मू० ४॥ इस सांपरायिक कर्म को क्या सादि सपर्यवसितरूप में बांधता है ? इत्यादि प्रश्न ऐर्यापथिक कर्म के बाँधने के विषय में जैसे किये गये हैं। वैसा ही यहां पर भी करना चाहिये । (गोयमा) हे गौतम ! (साइयं वा सपज्जवसियं बंधइ, अणाइयं वा सपज्जवसियं बंधइ, अणाइयं वा अपज्जवसियं बंधइ, णो चेव णं साइयं अपज्जवसियं बंधइ) हे गौतम! इस कर्म को जीव सादि सपर्यवसित बांधता है, अनादि सपर्यवसित बांधता है और अनादि अपर्यवसित बांधता है परन्तु सादि अपर्यवसित रूप से नहीं बांधता है। (तं भंते ! किं देसेणं देसं बंधइ) हे भदन्त ! जीव उस कर्म को जो बांधता है सो क्या अपने एक देश से उसके एक देश को बांधता है ? इत्यादि प्रश्न पहिले की तरह यहां पर भी करना चाहिये। ( एवं जहेव ईरिया वहिया बंधगस्स जाव सव्वेणं सव्वं बंधइ) हे गौतम ! जैसा कथन पहिले ऐपिथिक कर्म के बंध के विषय में कहा गया है, वैसा ही उत्तररूप कथन यहां पर भी जानना चाहिये-यावत् जीव अपने सर्वदेश से इस कर्म को सम्पूर्णरूप से बांधता है। तहेव) हे मत ! | १ सi|४४ भने साहि स५ सित ३ मधे छ ? અહીં પણ ઐર્યાપથિક કર્મના બંધ વિશેના પ્રશ્નને જેવાં જ બીજા પ્રશ્નને પણ सभल सेवा. (गोयमा !) . गौतम ! (साइयं वा सपज्जवसिय बधइ, अणाइयं वा सपन्जवसियं बंधइ, अणाइयवा अपज्जवसिय बधइ, णो चेवण साइयं अपज्जवसिय बइ) मा भने ७१ साहसपर्यवसित ३ मांधेछ, અનાદિ સપર્યવસિતરૂપે પણ બાંધે છે, અનાદિ અપર્યવસિત રૂપે પણ બાંધે છે ५२न्तु साहिमपयसित ३ मांधता नथी. (तमते ! किं देसेण देसं बधइ०) હે ભદન્ત ! શું જીવ પિતાના એક દેશથી (અંશથી) તેને એક દેશને सांधे छ ? त्या प्रश्न मडी ५५ पूछ। नये. ( एवं जहेव ईरियापहिया बंधगस्स जाव सव्वेणं सव्वं बधइ) 8 गौतम! पडेल अर्यापथि કર્મના બંધ વિષે જેવું કથન કરવામાં આવ્યું છે, એવું જ ઉત્તરરૂપ કથન અહી પણ સમજી લેવું. “ જીવ પિતાના સર્વ દેશથી આ કર્મને સંપૂર્ણરૂપે मां छ." त्या सुधानु यन मडी अड) ४२.
श्री.भगवती सूत्र : ७