________________
भगवती सूत्रे
बध्नाति, अपगतवेदाश्च बध्नन्ति तद् भदन्त ! किं स्त्रीपश्चात्कृतो बध्नाति ? पुरुषपाकृतो वध्नाति ? एवं यथैव ऐर्यापथिकवन्धकस्य तथैव निरवशेषं यावत् अथवा स्त्रीपश्चात्कृताय पुरुषपश्चात्कृताच, नपुंसकपश्चात्कृताश्च बध्नन्ति तद् भदन्त किं बंध, पुरिसपच्छाकडो बंधड़ ०१) हे भदन्त ! इस सपरायिक कर्मको यदि वेदरहित एक जीव बांधता है या वेदरहित अनेक जीव वांधते हैं तो जो जीव स्त्रीपश्चात्कृत है वह बांधता है या जो पुरुषपश्चात्कृत है वह बांधता है ? या जो नपुंसक पश्चात्कृत है वह बांधता है ? इत्यादि । ( गोयमा) हे गौतम ? ( एवं जहेब ईरियावहियाबंधगस्स तहेव निरवसेसं जाव अहवा इस्थी पच्छाकडा य, पुरिसपच्छाकडा य, नपुंसगपच्छाकडा य बंधेति ) जिस प्रकार ऐर्यापथिक के बंधक के विषय में कहा गया है उसी तरह यहां पर अथवा स्त्रीपश्चात्कृत, पुरुषपश्चात्कृत और नपुंसक पश्चात्कृत अनेक जीव इसे बांधते हैं " यहां तक जानना चाहिये । ( तं भंते ! किं बंधी, बंध, बंधिस्सइ) हे भदन्त ! उस सांपरायिक कर्मको भूतकाल में जीव ने बांधा है वर्तमान में वह इसे बांधता है और आगे बांधेगा ? १, (बधी, बंध, न बंधिस्सह) जीव ने इसे पहिले बांधा है, वर्तमान में वह बाँधता है, आगे वह इसे नहीं बांधेगा २, (बंधी, न बंधइ, बंधिस्सइ )
".
७८
રાયિક કને વેદરહિત એક જીવ પણ મધે છે અથવા વેદરહિત અનેક જીવા પણ ખાંધે છે, તે શું સ્ત્રી પશ્ચાદ્ભુત જીવ તેને ખાંધે છે ? કે પુરુષ પદ્માસ્કૃત જીવ તેને ખાંધે છે ? કે નપુંસક પશ્ચાદ્ભૂત જીવ તેને ખાંધે છે ? મ્રુત્યાદિ પ્રશ્નો અહીં પણુ ગ્રહણ કરવા.
(6 અથવા
તેને બાંધે
( गोयमा ! ) हे गौतम! ( एवं जहेव ईरियावहिया धगस्स तहेव निर. बसेसं जाव अहवा इत्थी पच्छाकडा य, पुरिसपच्छाकडा य, नपुं सगपच्छा कडा य, धति) भैर्याधिविषेने प्रभावामां मन्युछे प्रमा સાંપરાયિકના અધક વિષે પણ સમસ્ત કથન સમજવું. स्त्री पश्चा ભૃત પુરુષ પશ્ચાદ્ભુત અને નપુ ંસક પશ્ચાદ્ભુત અનેક જીવે પણ छे." अहीं सुधीनुं उथन श्रणु उर. ( तं भंते ! कि बंधी, बंध व धित्सव ) હૈ ભદ્દન્ત ! (૧) સાંપરાયિક કર્માંના બંધ શુ જીવે ભૂતકાળમાં કર્યો છે, पतंभानभां कुरै छे भने भविष्यमा ४२शे ? ( बंधी बधइ न बंधिस्सइ) (२) જીવે પહેલા તેને બંધ કર્યાં છે, વર્તમાનમાં તે તેના બંધ કરે છે. અને भविष्यभां नहीं रे ? ( बंधी, न बधइ वधिस्सइ ) (3) है वे पडेल ते
श्री भगवती सूत्र : ৩