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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०९७० ३१सू० ३ अवधिमानिनो लेश्यादिनिरूपणम १९५ श्रुतज्ञाना-वधिज्ञानेषु भवति, सम्यक्त्वमतिश्रुताज्ञानिनां विभङ्गज्ञानविवर्तनकाले तस्य युगपद्भावादाचे ज्ञानत्रय एवासौ तदावर्तते इति । गौतमः पृच्छति-' से णं भंते ! किं सजोगी होज्जा, अजोगी होज्जा ? हे भदन्त ! स खलु विभङ्गज्ञानी प्रतिपन्नावधिज्ञानः किं सयोगी भवति ? किं वा अयोगी भवति ? भगवानाह'गोयमा ! सजोगी होज्जा, नो अजोगी होज्जा' हे गौतम ! स प्रतिपन्नावधि. ज्ञानचारित्रः सयोगी भवती, नो अयोगी भवति, अवधिज्ञानकालेऽयोगित्वस्याभावात् । गौतमः पृच्छति-'जइ सजोगी होज्जा किं मणनोगो होज्जा, वइजोगी होज्जा, कायजोगी होज्जा ? ' हे भदन्त ! यदि प्रतिपन्नावधिज्ञानः सयोगी ज्ञान और अवधिज्ञान इन तीन ज्ञानों में होता है। क्यों कि-जय विभंगज्ञान का विवर्तनकाल होता है उस समय सम्यक्त्व, मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान ये तीन ज्ञान एक साथ ही उस जीव को हो जाते हैं। ___ अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-(से णं भंते ! किं सजोगी होज्जा, अजोगी होज्जा) अवधिज्ञान को प्राप्त हुआ वह विभंगज्ञानी जीव क्या योगसहित होता है या विना योग का होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-(गोयमा! सजोगी होज्जा नो अजोगी होज्जा ) हे गौतम ! प्रतिपन्न अवधिज्ञान चारित्रवाला वह विभंगज्ञानी योगसहित ही होता है-योगरहित नहीं होता है-क्यों कि अवधिज्ञान काल में अयोगिपने का अभाव रहता है। ___ अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-(जइ सजोगी होज्जा किं मणजोगी वा होज्जा, वहजोगी वा होज्जा, कायजोगी वा होज्जा) हे ज्ञानापाकाय . (१) मामिनिमाथि ज्ञान (भतिज्ञान ) (२) श्रुतशान અને (૩) અવધિજ્ઞાન. તે છતમાં આ ત્રણ જ્ઞાનને સાવ હોવાનું કારણ એ છે કે જ્યારે વિર્ભાગજ્ઞાનને વિવર્તનકાળ હોય છે, ત્યારે સમ્યકત્વ, મતિ. જ્ઞાન, શ્રતજ્ઞાન અને અવધિજ્ઞાન, એ ત્રણે જ્ઞાન એક સાથે જ તે જીવમાં વિદ્યમાન હોય છે.
गौतम स्वाभाना प्रश्न--( से णं भंते ! कि सजोगी होज्जा, अजोगी होज्जा ) रेनु विज्ञान विज्ञान३५ परियत थयेवु छ सो त १ શું યોગસહિત હોય છે કે રોગરહિત હોય છે? (મનયેગ, વચનયોગ અને કાયથેગ નામના ત્રણ ન કહ્યા છે.)
महावीर प्रभुन। उत्त२-- ‘गोयमा ! " गौतम ! (सजोगी होजा ना अजोगी होज्जा ) प्रतिपन्न अपविज्ञान शास्त्रिया ते विशानी योग
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭