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भगवती सूत्रे
प्रशस्तास्वेव सम्यक्त्वादि प्रतिपद्येत नाविशुद्धासु इतिभावः । ' तं जहा - तेउलेस्साए पम्हलेस्साए, सुकलेस्साए ' तद्यथा - तेजोलेश्यायाम्, पद्मलेश्यायाम्, शुक्लेश्यायाम् । गौतमः पृच्छति - ' से णं भंते ! कइसु णाणेसु होज्जा ? ' हे भदन्त ! स खलु विभङ्गज्ञानी अवधिज्ञानितया परिणतः पुरुषः कतिषु ज्ञानेषु भवति ? भगवानाह - ' गोयमा ! तिसु आभिणिवोहियनाण- सुयनाण - ओहिनाणेसु होज्जा ' हे भदन्त ! सविभङ्गज्ञानी अवधिज्ञानप्रतिपन्नः पुरुषस्त्रिषु आभिनिवोधिकज्ञानवाला बन जाता है और सम्यक् चारित्र युक्त हो जाता है-तब उसके कितनी लेश्याएँ होती है ? लेश्याएँ छ हैं- इनमें शुभ और अशुभ ये दो प्रकार की लेश्याएँ होती हैं-सो इस प्रकार के जीव में कितनी लेश्याएँ होती है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - ( गोयमा) हे गौतम! (तिg विसुद्ध लेस्सासु होज्जा) वह विभंगज्ञानी जीव जब अवधिज्ञान वाला बन जाता है तब वह तीन विशुद्ध लेश्याओं में होता है। क्यों कि ऐसा सिद्धान्त का कथन है कि प्रशस्त भाव लेश्याओं में ही जीव सम्य
व आदि को प्राप्त करता है, अविशुद्ध लेश्याओं में नहीं । ( तं जहा ) वे प्रशस्त तीन लेश्याएँ ये हैं- (ते उलेस्साए, पम्हलेस्साए, सुक्कलेस्साए ) तेजोलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं - ( से णं भंते ! कइसु नाणेसु होज्जा ) हे भदन्त ! अवधिज्ञानी के रूप में परिणत हुआ वह विभंगज्ञानी जीव कितने ज्ञानों में होता है ? अर्थात् कितने ज्ञानोंवाला होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- (गोयमा) हे गौतम! (तिसु आभिणियोहियनाण- सुयनाण-ओहिनाणेसु होज्जा) वह अवधिज्ञानको प्राप्त हुआ विभंगज्ञानी पुरुष मतिज्ञान, श्रुत
महावीर अलुन उत्तर - ( गोयमा ! ) हे गौतम! ( तिसु विसुद्धलेखासु होज्जा ) ते विलज्ञानी कुत्र क्यारे अवधिज्ञानी जनी लय छे त्यारे ते त्र વિશુદ્ધ લેશ્યાઓથી યુક્ત હાય છે. કારણ કે સિદ્ધાન્તનું એવું કથન છે કે પ્રશસ્ત ભાવલેશ્યાઓના સદૂભાવ હોય તે જ જીવ સમ્યકત્વ આદિ પ્રાપ્ત કરે છે, અવિશુદ્ધ લેસ્યાઓવાળા તેની પ્રાપ્તિ કરી શકતા નથી.
66 'जहा ” તે ત્રણ પ્રશસ્ત લેશ્યાઓનાં નામ આ પ્રમાણે છે—
( तेलेस्साए, पम्हलेस्साए, सुकलेस्साए ) (1) तेले येश्या, (२) पद्मवेश्या मने (3) शुललेश्या.
गौतम स्वामीनी प्रश्न -- ( से णं भंते ! कइसु नाणेसु होज्जा ? ) डे लहन्त ! અવધિજ્ઞાનીરૂપે પરિણત થયેàા તે વિભગજ્ઞાની જીવ કેટલાં જ્ઞાનવાળા હોય છે ?
भडावीर अलुना उत्तर--" गोयमा !” डे गौतम ! (तिसु अभिणिवोहियनाण सुयनाण - ओहिनाणेसु होज्जा ) ते व्यवधिज्ञानी पुरुष नीथनां भा
श्री भगवती सूत्र : ৩