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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०९ ३०३१ सू०१ अश्रुत्वाधादिलाभनिरूपणम् ६७१ यावत् कश्चित् केवलम् आभिनिबोधिकज्ञानमुत्पादयेत् , कश्चित् केवलम् आभिनिबोधिकज्ञानं नो उत्पादयेत् । गौतमः पृच्छति-' असोच्चा णं भंते ! केव लिस्स वा जाव केवलं सुयनाणं उप्पाडेज्जा ? ' हे भदन्त ! कश्चित् पुरुषः केवलिनो वा सकाशाद् यावत्-केवलिश्रावकपभृतेः सकाशाद् वा अश्रुत्वा खलु केवलं श्रुतज्ञानम् उत्पादयेत् किम् ? भगवानाह-' एवं जहा आभिणियोहिय नाणस्स बताया भणिया, तहा सुयनाणस्स वि भाणियन्या' हे गौतम ! एवं पूर्वोक्तरीत्या यथा आभिनिबोधिकज्ञानस्य वक्तव्यता भणिताः तथा श्रुरज्ञानस्यापि वक्तव्यता भणितव्याः 'नवरं सुयनाणावरणिज्जाणं कम्माणं खओर समे माणिगवे' नवरम् मतिज्ञानापेक्षया श्रुतज्ञानस्य विशेषस्तु आभिनिवोधिककहा है कि यावत कोई जीव आभनियोधिकज्ञान उत्पन्न कर सकता है और कोई जीव आभिनिबोधिकज्ञान उत्पन्न नहीं कर सकता है। __अब गौ म प्रभु से ऐसा पूछते हैं-(असोच्चाणं भंते ! केवलिस्स वा जाव केवलं सुयनाणं उप्पाडेज्जा) हे भदन्त ! क्या कोई जीव ऐसा भी होता है जो केवली के यावत् उनके श्रावक आदि के श्रुतज्ञानोत्पादक वचन सुने विना केवल श्रुतज्ञान को उत्पन्न कर सके ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-(एवं जहा आभिणियोहियनाणस्स वत्तव्वया भणिया तहा सुयनाणस्स वि भाणियव्वा ) हे गौतम ! जिस प्रकार से आभिनियोधिकज्ञान की वक्तव्यता कही जा चुकी है उसी प्रकार से श्रुतज्ञान की वक्तव्यता भी कहनी चाहिये। (नवरं सुयनाणावरणिज्जा णं कम्माणं खओवसमे भाणियव्वे ) परन्तु उस वक्तव्यता में और इस वक्तव्यता में यदि कोई अन्तर है तो वह श्रुतज्ञानावरणीयकर्मों के હે ગૌતમ ! તે કારણે મેં એવું કહ્યું છે કે કોઈ જીવ આભિનિબેધિક જ્ઞાન પ્રાપ્ત કરી શકે છે અને કોઈ જીવ તેને પ્રાપ્ત કરી શકતું નથી. गौतम स्वाभीनी प्रश्न-( असोच्चाण' भंते ! केवलिरस वा जाव केवल सुयनाण उप्पाडेज्जा १ ) 3 महन्त ! ओ ०१ ३al पासे अथवा तेमना શ્રાવકાદિ પાસે શ્રુતજ્ઞાનત્પાદક વચને શ્રવણ કર્યા વિના શું શ્રુતજ્ઞાન ઉત્પન્ન કરી શકે છે ખરો ? मडावी२प्रभुन। उत्त२-(एवं जहा आभिणिबोहियनाणस्स वत्तव्वया भणिया तहा सुयनाणस वि भाणियव्वा गौतम ! मानिनिमाथि शाननी वी परतव्यता G५२ ४ाम मावी छे, मेवी । श्रतज्ञाननी तव्यता ५ सभापी. ( नवर' सुयनाणावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमे भाणियव्वे) ५२न्तु ते वतव्यता ४२त मा વક્તવ્યતામાં આટલી વિશેષતા છે-જેમ આભિનિબંધિક જ્ઞાનની ઉત્પત્તિનું કારણ श्री भगवती सत्र : ७
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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