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________________ ६४६ भगवती श्रुत्वा प्रतिगता पर्षत् , ततो विनयेन प्राञ्जलिपुटो गौतमः पर्युपासीनः एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण अवादीत्-'असोचा णं भंते ! केवलिस्स वा केवलिसावगस्स वा केवलिसावियाए वा' हे भदन्त ! कश्चिज्जीवः केवलिनो वा जिनस्य सकाशात् अश्रुत्वा धर्मफलादिप्रतिपादकाचनश्रवणमन्तरेण पूर्वोपार्जितधर्मानुरागादेवेति भावः केवलिश्रावकस्य वा सकाशात् , येन सयमेव केवली पृष्टः, श्रुतं वा केवलिवचनं येन स केवलिश्रावकस्तस्य, केवलिश्राविकाया वा पाश्चात् धर्मोपदेशादिकमश्रुत्वा केवलिपज्ञप्तं धर्म लभेत श्रवणतया किम् ? इत्यग्रेण सम्बन्धः, तदेवं विशदयति- केवलि उवासगस्स वा, केवलिउवासियाए वा ' केवल्युपासकस्य, केवलिन उपासनां कुर्वतः, उपासनां कुर्वता येन अन्यस्मैकथ्यमानमुपदेशादिकं श्रुतं भवेत् स केवल्युपासकस्तस्य सकाशाद् वा, एवं केवल्युपासिकायाः सकाशाद् वा तप्पक्खियस्स वा, तप्पक्खियसावगस्स वा, तप्पक्खियसावियाए वा, तप्पक्खिय. निकली और वन्दना एवं नमस्कार करके तथा प्रभु द्वारा प्रदत्त धर्मोपदेश सुनकर वह वहां से अपने २ स्थान पर वापिस आगई । उस समय अवसर प्राप्त कर गौतम ने प्रभु की त्रिविध पर्युपासना से उपासना करते हुए बडे विनय के साथ दोनों हाथ जोड़कर उनसे इस प्रकार पूछा -(असोच्चा णं भंते ! केवलिस्स वा, केवलिसावगस्स वा, केवलिसा. वियाए वा) हे भदन्त ! कोई जीव केवली से-जिन से अथवा केवली श्रावक से अथवा केवली की श्राविका से (केवलि उपासगस्स वा) अथवा केवली के उपासक से (केवलि उवासियाए वा) अथवा केवली की उपासिका से (तप्पक्खियस्स वा, तप्पक्खियसावगरस वा) अथवा केवली के पक्ष के स्वयंबुद्ध से अथवा केवली के पाक्षिक के-स्वयंबुद्ध के श्रावक से (तप्पक्खिय सावियाए वा ) अथवा केवली के पाक्षिक की પાછા ફર્યા. ત્યારબાદ ધર્મતત્વ સમજવાની જિજ્ઞાસાવાળા ગૌતમ સ્વામીએ મહાવીર પ્રભની વિવિધ પર્ય પાસના કરીને વિનયપૂર્વક બને હાથ જોડીને આ પ્રમાણે પ્રશ્ન કર્યા– (असोचाणं भंते ! केवलिस वा, केवलिसागरस वा, केवलिसावियाए वा) હે ભદન્ત ! કેવળજ્ઞાની પાસેથી અથવા કેવલીના શ્રાવક પાસેથી અથવા કેવ बीनी श्राविक पासेथी “केवलि उपासास वा, केवलि उवासियाए वा” अथवा विलीन पास पासेथी अथ। वहीनी सिं पासेथा (तपक्खियस्स वा, तप्पक्खियसावगरस वा, तप्पक्खियसावियाए वा ) मथ लीना पक्षना સ્વયંબદ્ધ પાસેથી અથવા કેવલીના પક્ષના સ્વયં બુદ્ધ શ્રાવક પાસેથી અથવા वीन पक्षनी श्रावित पासेथी " तपक्खिय उवासगस्त वा" । पसीना श्री.भगवती सूत्र : ७
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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