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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ८३०१० ज्ञानावरणीयादिकर्मणां सबन्धनिरूपणम् ५६१ पुच्छा' हे भदन्त ! यस्य खलु जीवस्य आयुष्कं कर्म भवति तस्य किम् आन्तरायिकं कर्म भवति ? एवं यस्य आन्तरायिकं कर्म भवति तस्य किम् आयुष्कं कर्म भवति ? इति पृच्छा, भगवानाह-'गोयमा ! जस्स आउयं तस्स अंतराइयं सिय अस्थि; सिय नत्थि जस्स पुण अंतराइयं तस्स आउय नियमा ५' हे गौतम ! यस्य जीवस्य आयुष्कं कर्म भवति तस्य आन्तरायिकं स्यात् कदाचित् कस्यचित् अस्ति, स्यात् कदाचित् कस्यचित् नास्ति, तथा च अकेवलिन आयुरस्ति आन्तरायिकं चास्ति, केवलिनस्तु आन्तरायिकं नास्ति इत्येवं भजना बोध्या, किन्तु यस्य पुनरान्तरायिकं कर्म भवति तस्य आयुष्कं नास्ति इत्येवं भजना बोध्या, किन्तु यस्य पुनरान्तरायिकं कर्म भवति तस्य आयुष्कं नियमात् नियमतो भवति ५। अथ नामकर्म शेषद्वयेन समं प्ररूपयतिहोता है उस जीवके क्या अन्तरायकर्मका भी सद्भाव है और जिस जीव के अन्तरायकर्म का सद्भाव होता है उस जीव के क्या आयुकर्म का भी सद्भाव होता है ? इसके उत्तर प्रभु कहते हैं-(गोयमा) हे गौतम! (जस्स आउयं तस्स अंतराइयं सिय अस्थि, सिय नत्थि, जस्स पुण अंतराइयं तस्स आउयं नियमा५) जिस जीव के आयुष्क कर्म का सद्भाव होता है, उस जीव के अन्तरायकर्म का सद्भाव नियम से होता ही है ऐसा नियम नहीं है-ऐसे जीव के अन्तराय होता भी है और नहीं भी होता है ऐसी आयुकर्म के साथ अन्तरायकर्म की भजना है। जो जीव अकेवली है-उसके आयुकर्म भी है और अन्तरायकर्म भी है। परन्तु जो जीव केवली हैं उनके आयुकर्म तो है परन्तु अन्तराय नहीं है। इस तरहसे आयुर्म के साथ अन्तरायकर्मकी भजना है। किन्तु जिस जीवके अन्तरायकर्म होता है, उसके नियम से आयुष्कर्म होता है॥५॥ અંતરાય કર્મને પણ સદ્ભાવ હોય છે ખરે? અને જે જીવમાં અંતરાય કમને સદ્ભાવ હોય છે, તે જીવમાં શું આયુષ્ય કમને પણ સદ્દભાવ હોય છે? महावीर प्रसुनी उत्तर -(गोयमा ! जस्स आउय तस्स अंतराइय सिय अत्थि, सिय नत्थि, जस्त पुण अंतराइयं तस्स आउय नियमा) 3 गौतम ! જે જીવમાં આયુષ્ય કમને સદ્ભાવ હોય છે, તે જીવમાં કયારેક અંતરાય કર્મનો સદુભાવ હોય છે અને કયારેક સદ્દભાવ નથી પણ હોતે. કેવલીમાં આયુકર્મને સદુભાવ હોય છે પણ અંતરાય કર્મનો સદુભાવ હેતે નથી, પરંતુ કેવલી સિવાયના જીમાં આયુ અને અંતરાય, એ બને કર્મોને એક સાથે સદૂભાવ હોય છે. તે કારણે જ આયુકર્મની સાથે અંતરાય કમને વિકલ્પ સાવ કહ્યો છે. પરંતુ જે જીવમાં અંતરાય કર્મને સદુભાવ હોય છે, તે જીવમાં આયુષ્ય કર્મને પણ અવશ્ય સદ્ભાવ જ હોય છે. भ ७१ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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