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भगवतीसूत्रे
नियमा अनंतेहिं' आवेष्टितपरिवेष्टितो जीवम देशः स्यात्तदा स नियमात् नियमतः अनन्तैः ज्ञानावरणीयाविभागपरिच्छेदैरावेष्टित परिवेष्टितोऽवसेयः ।
अथ नैरयिकमाश्रित्य गौतमः पृच्छति - ' एगमेगस्स णं भंते ! नेरइयस्स एगमेगे जीव एसे णाणावर णिज्जस्स कम्मस्स के इएहिं अविभागपरिच्छेए हिं आवेदयपरिवेदिए ? ' हे भदन्त ! एकैकस्य खलु नैरयिकस्य एकैको जीवन देशो ज्ञानावरणीयस्य कर्मणः क्रियद्भिः अविभागपरिच्छेदैः परमाणुरूपैर्निरंशांशैरावेष्टितपरिवेष्टितो भवति ? भगवानाह - ' गोयमा ! नियमा अनंतेहिं ' हे गौतम ! एकैको नैरयिकजीवप्रदेशो नियमात् नियमतो ज्ञानावरणीय कर्मणः अनन्तैरविभापरिच्छेदैः आवेष्टित परिबेष्टितो भवति, 'जहा नेरइयरस एवं जात्र वैमाणि - इसलिये छद्मस्थ जीव का जो जीवप्रदेश ज्ञानावरणीयकर्म से आवेटित परिवेष्टित है वह नियम से ज्ञानावरणीयकर्म के अनन्त अविभागपरिच्छेदों से ही आवेष्टित परिवेष्टित है ऐसा जानना चाहिये !
अब गौतमस्वामी नैरयिक जीव की अपेक्षा लेकर प्रभुसे ऐसा पूछ रहे हैं- ( एगमेगस्स णं भंते! नेरइयस्स एगमेगे जीवपए से णाणावरणिजस्स कम्मस्स केवइएहिं अविभागपलिच्छेएहिं आवेढिए परिवेढिए ) हे भदन्त एक एक नैरयिक का एक २ जीवप्रदेश ज्ञानावरणीयकर्म के कितने अविभागपरिच्छेदों से परमाणुरूप निरंश अंशों से आवेष्टित परिवेष्टित होता है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं- (गोयमा) हे गौतम (नियमा अणते हिं) एक एक नैरयिक का जीवप्रदेश नियम से ज्ञानावरणीयकर्म के अनंत अविभागपरिच्छेदों से आवेष्टित परिवेष्टिय होता है ? ( जहा
જીવને જે જીવપ્રદેશ જ્ઞાનાવરણીય કવી આવેષ્ટિત પરિવેષ્ટિત હોય છે, તે નિયમથી જ જ્ઞાનાવરીય કર્મના અનંત અવિભાગી પરિચ્છેદેથી આવેષ્ટિત પરિવેષ્ટિત હોય છે, એમ સમજવુ,
હવે ગૌતમ સ્વામી નારક જીવાને અનુલક્ષીને એવેા પ્રશ્ન પૂછે છે કે. ( एगमे सण भरते ! नेरइयरस एगमेगे जी पर से णाणावर णिज्जम्स कम्मस्स केवइहिं अविभागपरिच्छेएहि आवेदियपरिवेढिए ? ) डेलहन्त ! ये ये नारકના એક એક જીવપ્રદેશ જ્ઞાનાવરણીય કના કેટલા અવિભાગી પરિચ્છેદેથી ( परमाणु३प निरंश म शोथी) आवेष्टित परिवेष्टित (वटजाये) होय छे ? महावीर प्रभुना उत्तर- " गोयमा !" हे गौतम! ( नियमा अणतेहि ) પ્રત્યેક નારક જીવના પ્રત્યેક જીવપ્રદેશ નિયમથી જ જ્ઞાનાવરણીય કર્મોના અનંત व्यविभागी परिच्छेदोथी वींटजायेसो होय छे. ( जहा नेरइयस्स एवं जाव वेमा
श्री भगवती सूत्र : ৩