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भगवतीसूत्रे जीवानाम् यावत् वैमानिकानाम् पृच्छा, गौतम ! अनन्ता अविभागपरिच्छेदाः प्रज्ञप्ताः, एवं यथा ज्ञानावरणीयस्य अविभागपरिच्छेदा भणितास्तथा अष्टा. नामपि कर्मप्रकृतीनां भणितव्याः, यावत् - वैमानिकानाम् । एकैकस्य खलु भदन्त ! जीवस्य एकैको जीवप्रदेशः, ज्ञानावरणीयस्य कर्मणः कियद्भिरविभागपरिच्छेदैः आवेष्टितः परिवेष्टितः स्यात् ? गौतम ! स्यात् आवेष्टित परिवेष्टितः, कर्म के अविभागी परिच्छेद अनन्त कहे गये हैं। (एवं सव्वजीवाणं जाव) इसी तरह से समस्त जीवों के जानना चाहिये-यावत् ( वेमा. णिया णं पुच्छा ) हे भदन्त ! वैमानिक जीवों के ज्ञानावरणीय कर्म के अविभागी परिच्छेद कितने कहे गये हैं ? (गोयमा! अणंता अविभागपलिच्छेया पण्णत्ता) हे गौतम ! वैमानिक जीवों के ज्ञानावरणीय कर्म अविभागी परिच्छेद अनन्त कहे गये हैं । ( एवं जहा णाणावरणिजस्स अविभागपलिच्छेया भणिया तहा अट्ठण्ह वि कम्मपगडीणं भाणियव्या) जिस प्रकार से ज्ञानावरणीय कर्म के अविभागीपरिच्छेद कहे गये हैं उसी तरह शेष सात कर्मों के भी अविभागी परिच्छेद जानना चाहिये। (जाव वेमाणियाणं ) यावत् वैमानिक देवों के भी ज्ञानावरणीय आदि आठ कर्मों के अविभागी परिच्छेद अनन्त होते हैं। (एगमेगस्स णं भंते ! जीवस्स एगमेगे जीवपएसे णाणावणिजस्स कम्मस्स केवइएहिं अविभागपलिच्छेएहिं आवेढियपरिवेढिए सिया) हे भदन्त ! एक एक जीव का एक २ जीव प्रदेश ज्ञानावरणीय कर्म के कितने अविभागपहोना ज्ञानावरणीय भनी मन त मविलासी परिछे ४द्या . (एवं सव्व जीवाण-यावत् वेमाणिया ण') मेरी प्रमाणे वैमानि वो प-तना समस्त જેના જ્ઞાનાવરણીય કર્મના અવિભાગી પદિ અનંત કહેવામાં આવ્યા છે.
( एवं जहा णाणावरणिज्जस्स अविभागपलिच्छेया भणिया तहा अट्टाह वि कम्मपगडीण भाणियव्वा ) वी शते ज्ञानावरणीय भना अविभाग परिह અનંત કહેવામાં આવ્યા છે, એ જ પ્રમાણે બાકીનાં સાત કર્મોના અવિભાગી ५२०छे ५१ मनत सभा . (जाव वेमाणियाण) वैमानि । पर्य-तना સમસ્ત જીના જ્ઞાનાવરણીય આદિ આઠ કર્મોના અવિભાગી પરિચ્છેદ પણ અનંત છે, એમ સમજવું
( एगमेगस्म ण भंते ! जीवस्स एगमेगे जीवपएसे णाणावरणिजस्स कम्मस्स केवइएहिं अविभागपलिच्छेएहिं आवेढियपरिवेदिर सिया ?) महन्त !
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭